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उत लिङ्गनियमः कश्चिदस्तीत्यत आह
सर्वार्थसिद्धौ
नारकसंमूच्छिनो नपुंसकानि ||50||
8359. नरकाणि वक्ष्यन्ते । नरकेषु भवा नारकाः । संमूर्च्छनं संमूच्र्छः स येषामस्ति' ते संमूच्छिनः । नारकारच संमूच्छिनश्च नारकसमूच्छिनः । चारित्रमोहविकल्पनोकषायभेदस्य नपुंसकवेदस्याशुभनाम्नश्चोदयात्न स्त्रियो न पुमांस इति नपुंसकानि भवन्ति । नारकसंमूच्छिनो नपुंसकान्येवेति नियमः । तत्र हि स्त्रीपुंसविषयमनोज्ञशब्दगन्धरूपरसस्पर्शसंबन्धनिमित्ता स्वल्पापि सुखमात्रा नास्ति ।
$ 360. यद्येवमवधियते, अर्थादापन्नमेतदुक्तेभ्योऽन्ये संसारिणस्त्रिलिङ्गा इति यत्रात्यन्तं नपुंसकलिङ्गस्याभावस्तत्प्रतिपादनार्थमाह
-2150 § 359]
न देवाः ॥51॥
8361. स्त्रैणं पौंस्नं च यन्निरतिशयसुखं शुभगतिनामोदयापेक्षं तद्देवा अनुभवन्तीति न तेषु नपुंसकानि सन्ति ।
$ 362. अथेतरे किल्लिङ्गा इत्यत आह—
शेषास्त्रिवेदाः ॥ 521
8 363. त्रयो वेदा येषां ते त्रिवेदाः । के पुनस्ते वेदा: ? स्त्रीत्वं पुंस्त्वं नपुंसकत्वमिति । तीनों लिंग होते हैं या लिंगका कोई स्वतन्त्र नियम है ? अव इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
नारक और संमूच्छिन नपुंसक होते हैं ॥50॥
8359. नरकोंका कथन आगे करेंगे। जो नरकोंमें उत्पन्न होते हैं वे नारकी कहलाते हैं । जो संमूर्च्छन जन्मसे पैदा होते हैं वे संमूच्छिन कहलाते हैं । सूत्रमें नारक और संमूच्छिन इन दोनों पदोंका द्वन्द्वसमास हैं । चारित्रमोह के दो भेद हैं-कपाय और नोकषाय । इनमें से नोकषायके भेद नपुंसकवेदके उदयसे और अशुभ नामकर्मके उदयसे उक्त जीत्र स्त्री और पुरुष न होकर नपुंसक होते हैं । यहाँ ऐसा नियम जानना कि नारक और संमूच्छिन नपुंसक ही होते हैं.! इन जीवोंके मनोज्ञ शब्द, गन्ध, रूप, रस और स्पर्श के सम्बन्धसे उत्पन्न हुआ स्त्री-पुरुष विषयक थोड़ा भी सुख नहीं पाया जाता है ।
$ 360. यदि उक्त जीवोंके नपुंसकवेद निश्चित होता है तो यह अर्थात् सिद्ध है कि इनसे अतिरिक्त अन्य संसारी जीव तीन वेदवाले होते हैं। इसमें भी जिनके नपुंसकवेदका अत्यन्त अभाव है उनका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं
देव नपुंसक नहीं होते ॥51॥
$ 361. शुभगति नामकर्मके उदयसे स्त्री और पुरुषसम्बन्धी जो निरतिशय सुख है। उसका देव अनुभव करते हैं इसलिए उनमें नपुंसक नहीं होते ।
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$ 362. इनसे अतिरिक्त शेष जीव कितने लिंगवाले होते हैं, इस बातको बतलाने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं
शेषके सब जीव तीन वेदवाले होते हैं ॥52॥
8363. जिनके तीन वेद होते हैं वे तीन वेदवाले कहलाते हैं । शंका- वे तीन वेद कौन 1. मस्तीति सम्मू- मु. 1. 2. -त्यन्तनपु - आ. दि. 1 त्यन्तिकनपुर - दि. 21 3 शयं 4. नपुंसकलिंगानि सन्ति मु. ।
सुखं गति- मु. ।
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