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सर्वार्थसिद्धी
[316 § 377
8377. यथाक्रममित्यनुवर्तते । तेषु नरकेषु भूमिमेण यथासंख्य मे कावयः स्थितयोऽभिसंबध्यन्ते । रत्नप्रभायामुत्कृष्टा स्थितिरेकसागरोपमा । शर्कराप्रभायां त्रिसागरोपमा । वालुकाप्रभायां सप्तसागरोपमा । पंकप्रभायां दशसागरोपमा । धूमप्रभायां सप्तदशसागरोपमा । तमः प्रभायां द्वाविंशतिसागरोपमा । महातमः प्रभायां त्रयस्त्रशत्सागरोपमा इति । परा उत्कृष्टेत्यर्थः । 'सत्वानाम्' इति वचनं भूमिनिवृत्त्यर्थम् । भूमिषु सत्स्वानामियं स्थितिः, न भूमीनामिति ।
$378. उक्तः सप्तभूमिविस्तीर्णोऽधोलोकः । इदानीं तिर्यग्लोको वक्तव्यः । कथं पुनस्तिर्यग्लोकः । यतोऽसंख्येयाः स्वयंभूरमणपर्यन्ता स्तिर्यक्प्रचयविशेषेणावस्थिता द्वीपसमुद्रास्ततस्तिर्यग्लोक इति । के पुनस्तिर्यग्व्यवस्थिता इत्यत आह
जम्बूद्वीपलवणोदादय: शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ॥17॥
8379. जम्बूद्वीपादयो द्वीपाः । लवणोदादयः समुद्राः । यानि लोके शुभानि नामानि तन्नामानस्ते । तद्यथा - जम्बूद्वीपो द्वीपः । लवणोदः समुद्रः । धातकीखण्डो द्वीपः । कालोवः समुद्रः । पुष्करवरो द्वीपः । पुष्करवरः समुद्रः । वारुणीवरो द्वीपः । वारुणीवरः समुद्रः । क्षीरवरो द्वीपः । क्षीरवरः समुद्रः । घृतवरो द्वीपः । घृतवरः समुद्रः । इक्षुवरो द्वीपः । इक्षुवरः समुद्रः । नन्दीश्वरवरो द्वीपः । नन्दीश्वरवरः समुद्रः । अरुणवरो द्वीपः । अरुणवरः समुद्रः । इत्येवम संख्येया द्वीपसमुद्राः स्वयंभूरमणपर्यन्ता वेदितव्याः ।
8 380. अमीषां विष्कम्भसंनिवेशसंस्थानविशेषप्रतिपत्यर्थमाह
8377. इस सूत्रमें 'यथाक्रमम्' इस पदकी अनुवृत्ति होती है। जिससे उन नरकोंमें भूमिके क्रमसे एक सागरोपम आदि स्थितियोंका क्रमसे सम्बन्ध हो जाता है । रत्नप्रभामें एक सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । शर्कराप्रभामें तीन सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । वालुकाप्रभामें सात सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । पंकप्रभामें दस सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । धूमप्रभामें सत्रह सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । तमःप्रभामें बाईस सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है और महातमःप्रभा तैंतीस सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । 'परा' शब्दका अर्थ 'उत्कृष्ट' है । और 'सत्त्वानाम्' पद भूमियोंके निराकरण करनेके लिए दिया है। अभिप्राय यह है कि भूमियोंमें जीवोंकी यह स्थिति है, भूमियोंकी नहीं ।
8378. सात भूमियों में फैले हुए अधोलोकका वर्णन किया। अब तिर्यग्लोकका कथन करना चाहिए । शंका- तिर्यग्लोक यह संज्ञा क्यों है ? समाधान—चूँकि स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त असंख्यात द्वीप- समुद्र तिर्यक् प्रचयविशेषरूपसे अवस्थित हैं, इसलिए तिर्यग्लोक संज्ञा है । तिर्यक् रूपसे अवस्थित क्या हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
जम्बूद्वीप आदि शुभ नामवाले द्वीप और लवणोद आदि शुभ नामवाले समुद्र हैं ॥7॥ 8379. जम्बूद्वीप आदिक द्वीप हैं और लवणोद आदिक समुद्र हैं । तात्पर्य यह है कि लोकमें जितने शुभ नाम हैं उन नामवाले वे द्वीप समुद्र हैं । यथा - जम्बूद्वीप नामक द्वीप, लवणोद समुद्र, धातकीखण्ड द्वीप, कालोद समुद्र, पुष्करवर द्वीप, पुष्करवर समुद्र, वारुणीवर द्वीप, वारुणीवर समुद्र, क्षीरवर द्वीप, क्षीरवर समुद्र, घृतवर द्वीप, घृतवर समुद्र, इक्षुवर द्वीप, इक्षुवर समुद्र, नन्दीश्वरवर द्वीप, नन्दीश्वरवर समुद्र, अरुणवर द्वीप और अरुणवर समुद्र, इस प्रकार स्वयंभूरमण पर्यन्त असंख्यात द्वीप- समुद्र जानने चाहिए ।
8380. अब इन द्वीप समुद्रों के विस्तार, रचना और आकारविशेषका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
1. के पुनस्ते तिर्य- आ. वि. 1
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