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तृतीयोऽध्यायः
द्विद्विविष्कम्भाः पूर्व पूर्व परिक्षेपणो वलयाकृतयः || ४ ||
381. द्विद्विरिति वीप्साम्यावृत्तिवचनं विष्कम्भद्विगुणत्वव्याप्त्यंम् । आद्यस्य द्वीपस्य यो विष्कम्भः तद्विगुणविष्कम्भो लवणजलधिः । तद् द्विगुणविष्कम्भो द्वितीयो द्वीपः । तद्विगुणविष्कम्भोद्वितीयो जलधिरिति । द्विद्विविष्कम्भो येषां ते द्विद्विविष्कम्भाः । पूर्वपूर्वपरिक्षेपिवचनं ग्रामनगरादिवद्विनिवेशो मा विज्ञायीति । वलयाकृतिवचनं चतुरस्त्रादिसंस्थानान्तरनिवृत्त्यर्थम् । 8382. अत्राह, जम्बूद्वीपस्य प्रवेशसंस्थानविष्कम्भा वक्तव्यास्तन्मूलत्वादितरविष्कम्भाविविज्ञानस्येत्युच्यते
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तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृतो योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीपः || १||
8383. तेषां मध्ये तन्मध्ये । केषाम् ? पूर्वोक्तानां द्वीपसमुद्राणाम् । नाभिरिव नाभिः । मेरुर्नाभिर्यस्य स मेरुनाभिः । वृत्त आदित्यमण्डलोपमानः । शतानां सहस्रं शतसहस्रम् । योजनानां शतसहस्रं योजनशतसहस्रम् | योजनशतसहस्रं विष्कम्भो यस्य सोऽयं योजनशतसहस्रविष्कम्भः । कोsit ? जम्बूद्वीपः । कथं जम्बूद्वीप: ? जम्बूवृक्षोपलक्षितत्वात् । उत्तरकुरूणां मध्ये जम्बूवृक्षोनादिनिधनः पृथिवीपरिणामो ऽकृत्रिमः सपरिवारस्तदुपलक्षितोऽयं द्वीपः ।
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वे सभी द्वीप और समुद्र दूने-दूने व्यासवाले, पूर्व-पूर्व द्वीप और समुद्रको वेष्टित करनेवाले और चूड़ीके आकारवाले हैं ॥8॥
8381. द्वीप - समुद्रोंका विस्तार दूना दूना है इस बातको दिखलाने के लिए सूत्र में 'द्विद्विः ' इस प्रकार वीप्सा अर्थ में अभ्यावृत्ति वचन है । प्रथम द्वीपका जो विस्तार है लवणसमुद्रका विस्तार उससे दूना है तथा दूसरे द्वीपका विस्तार इससे दूना है और समुद्रका इससे दूना है । इस प्रकार उत्तरोत्तर दूना-दूना विस्तार है । तात्पर्य यह है कि इन द्वीप समुद्रों का विस्तार दूनादूना है, इसलिए सूत्र में उन्हें दूने-दूने विस्तारवाला कहा है। ग्राम और नगरादिकके समान इन द्वीप- समुद्रों की रचना न समझो जाये इस बातके बतलाने के लिए सूत्र में 'पूर्वपूर्व परिक्षेपिण:' यह वचन दिया है । अर्थात् वे द्वीप और समुद्र उत्तरोत्तर एक दूसरेको घेरे हुए हैं । सूत्रमें जो 'वलयाकृतय:' वचन दिया है वह चौकोर आदि आकारोंके निराकरण करने के लिए दिया है ।
8382. अब पहले जम्बूद्वीपका आकार और विस्तार कहना चाहिए, क्योंकि दूसरे द्वीप समुद्रोंका विस्तार आदि तन्मूलक है, इसलिए आगेका सूत्र कहते हैं
उन सबके बीचमें गोल और एक लाख योजन विष्कम्भवाला जम्बूद्वीप है। जिसके मध्यमें नाभिके समान मेरु पर्वत है ॥9॥
$ 383. 'तन्मध्ये' पदका अर्थ है 'उनके बीच में' । शंका-किनके बीचमें ? समाधानपूर्वोक्त द्वीप और समुद्रोंके बीचमें । नाभिस्थानीय होनेसे नाभि कहा है। जिसका अर्थ मध्य है । अभिप्राय यह है कि जिसके मध्य में मेरु पर्वत है, जो सूर्य के मण्डल के समान गोल है और जिसका एक लाख योजन विस्तार है ऐसा यह जम्बूद्वीप है । शंका- इसे जम्बूद्वीप क्यों कहते हैं ? समाधान - जम्बूवृक्षसे उपलक्षित होने के कारण इसे जम्बूद्वीप कहते हैं । उत्तरकुरुमें अनादिनिधन, पृथिवी से बना हुआ, अकृत्रिम और परिवार वृक्षोंसे युक्त जम्बूवृक्ष है, उसके कारण यह जम्बूद्वीप कहलाता है ।
विशेषार्थ - अधोलोकका विवेचन कर आये हैं। इसके बाद मध्यलोक
यभा
1. बीप्सायां वृत्तिवचनं आ, दि. 1, दि. 2, मु. 1 2. पूर्वोक्तद्वीप - आ., दि. 1, दि. 2, मु. 3. नाभिर्मध्यम । मेरु- आ., दि. 1, दि. 2, मु. 1 4. परिमाणोऽकृ- मु. ।
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