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सर्वार्थसिद्धी
[2141 $ 341 अनादिसंबन्धे, विशेषापेक्षया सादिसंबन्धे च बोजवृक्षवत् । ययौदारिकवक्रियिकाहारकाणि जीवस्य कदाचित्कानि, न तथा तैजसकार्मणे । नित्यसंबन्धिनी हि ते आ संसारक्षयात् । 8342. त एते तैजसकार्मणे किं कस्यचिदेव भवत उताविशेषेणेत्यत आह--
सर्वस्य ॥421 8343. 'सर्व' शब्दो निरवशेषवाची । निरवशेषस्य संसारिणो जीवस्य ते द्वे अपि शरीरे भवत इत्यर्थः।
8344. अविशेषाभिधानात्तरौदारिकादिभिः सर्वस्य संसारिणो योगपधेन संबन्धप्रसंगे संभविशरीरप्रदर्शनार्थमिदमुच्यते
तदादीनि भाज्यानि युगपर्दे कस्या चतुर्व्यः ॥43॥ 8345. 'तत्' शब्दः प्रकृततैजसकार्मणप्रतिनिर्देशार्थः । ते तैजसकार्मणे आदिर्येषां तानि तवादीनि । भाज्यानि विकल्प्यानि । आ कुतः? आ चतुर्व्यः। युगपदेकस्यात्मनः। कस्यचिद् द्वे तेजसकामणे । अपरस्य त्रीणि औदारिकतैजसकार्मणानि वैक्रियिकतजसकार्मणानि वा। अन्यस्य चत्वारि औदारिकाहारकर्तजसकार्मणानीति विभागः क्रियते । कि तैजस और कार्मण शरीरका अनादि सम्बन्ध है और सादि सम्बन्ध भी है। कार्यकारणभावकी परम्पराकी अपेक्षा अनादि सम्बन्धवाले हैं और विशेषकी अपेक्षा सादि सम्बन्धवाले हैं । यथा बीज और वृक्ष। जिस प्रकार औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर जीवके कदाचित् होते हैं उस प्रकार तैजस और कार्मण शरीर नहीं हैं । संसारका क्षय होने तक उनका जीवके साथ सदा सम्बन्ध है।
342. ये तैजस और कार्मण शरीर क्या किसी जीवके ही होते हैं या सामान्यरूपसे सबके होते हैं । इसी बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
तथा सब संसारी जीवोंके होते हैं ॥42॥
8343. यहाँ 'सर्व' शब्द निरवशेषवाची है । वे दोनों ही शरीर सब संसारी जीवोंके होते हैं यह इस सूत्र का तात्पर्य है।
$344. सामान्य कथन करनेसे उन औदारिकादि शरीरोंके साथ सब संसारी जीवोंका एक साथ सम्बन्ध प्राप्त होता है, अतः एक साथ कितने शरीर सम्भव हैं इस बातको दिखलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
एक साथ एक जीवके तेजस और कार्मणसे लेकर चार शरीर तक विकल्पसे होते हैं।43॥
8345. सत्रमें प्रकरणप्राप्त तैजस और कार्मण शरीरका निर्देश करनेके लिए 'तत' शब्द दिया है । तदादि शब्दका समासलभ्य अर्थ है-तैजस और कार्मण शरीर जिनके आदि हैं वे। भाज्य और विकल्प्य ये पर्यायवाची नाम हैं। तात्पर्य यह है कि एक साथ एक आत्माके पूर्वोक्त दो शरीरसे लेकर चार शरीर तक विकल्पसे होते हैं। किसीके तैजस और कार्मण ये दो शरीर होते हैं । अन्यके औदारिक, तैजस और कार्मण या वैक्रियिक, तैजस और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं। किसी दूसरेके औदारिक, आहारक, तैजस और कार्मण ये चार शरीर होते हैं। इस प्रकार यह विभाग यहाँ किया गया है ।
विशेषार्थ-आगे 47वें सूत्रमें तपोविशेषके बलसे वैक्रियिक शरीरकी उत्पत्तिका निर्देश किया है, इसलिए प्रश्न होता है कि किसी ऋद्धिधारी साधुके एक साथ पाँच शरीरका सद्भाव 1. -सम्बन्धेऽपि च मुः। 2. -देकस्मिन्ना च- मु.।
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