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द्वितीयोऽध्यायः
अनन्तगुणे परे ॥39॥
8337. प्रवेशत इत्यनुवर्तते, तेनैवमभिसंबन्धः क्रियते—आहारकात्तैजसं प्रवेशतोऽनन्तगुणम्, तैजसात्कार्मणं प्रवेशतोऽनन्तगुणगिति । को गुणकारः ? अभव्यानामनन्तगुणः सिद्धानाम
-2141 § 341]
नन्तभागः ।
8338. तत्रैतत्स्याच्छयक वन्मूर्तिमद्द्रव्योपचितत्वात्संसारिणो जीवस्याभिप्रेतग तिनिरोधप्रसङ्ग इति ? तन्न; कि कारणम् । यस्मादुभे अप्येते
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प्रतीघात ॥40॥
8339. मूर्तिमतो मूर्त्यन्तरेण व्याघातः प्रतीघातः । स नास्त्यनयोरित्यप्रतीघाते; सूक्ष्म'परिणामात् अयःपिण्डे तेजोऽनुप्रवेशवतेजसकार्मणयोर्नास्ति वज्रपटलादिषु व्याघातः । ननु च वैकाहारकयोरपि नास्ति प्रतीघातः ? सर्वत्राप्रतीघातोऽत्र विवक्षितः । यथा तैजसकार्मणयोरालोकान्तात् सर्वत्र नास्ति प्रतीघातः, न तथा वैक्रियिकाहारकयोः ।
8340. आह किमेतावानेव विशेष उत कश्चिदन्योऽप्यस्तीत्याहअनादिसंबन्धे च ॥41॥
§ 341 'च' शब्दो विकल्पार्थः । अनादिसंबन्धे सादिसंबन्धे चेति । कार्यकारणभावसंतत्या को बतलाने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं
परवर्ती दो शरीर प्रदेशोंकी अपेक्षा उत्तरोत्तर अनन्तगुणे हैं ॥39॥
8337. पूर्व सूत्रसे 'प्रदेशत:' इस पदकी अनुवृत्ति होती है। जिससे इसकार सम्बन्ध करना चाहिए कि आहारक शरीरसे तैजस शरीर के प्रदेश अनन्तगुणे हैं और तेजस शरीरसे कार्मण शरीरके प्रदेश अनन्तगुणे हैं। शंका- गुणकार क्या है ? समाधान - अभव्यों से अनन्तगुणा और सिद्धोंका अनन्तवाँ भाग गुणकार है ।
8338. शंका - जिस प्रकार कील आदिके लग जानेसे कोई भी प्राणी इच्छित स्थानको नहीं जा सकता उसी प्रकार मूर्तिक द्रव्यसे उपचित होनेके कारण संसारी जीवको इच्छित गतिके निरोधका प्रसंग प्राप्त होता है ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि ये दोनों शरीरप्रतीघातरहित हैं ॥40॥
339. एक मूर्ति पदार्थका दूसरे मूर्तिक पदार्थके द्वारा जो व्याघात होता है उसे प्रतीघात कहते हैं । इन दोनों शरीरोंका इस प्रकारका प्रतीघात नहीं होता, इसलिए ये प्रतीघात रहित हैं । जिस प्रकार सूक्ष्म होनेसे अग्नि लोहेके गोले में प्रवेश कर जाती है । उसी प्रकार तैजस और कार्मण शरीरका वज्रपटलादिकमें भी व्याघात नहीं होता । शंका- वैक्रियिक और आहारक शरीरका भी प्रतीघात नहीं होता फिर यहाँ तैजस और कार्मण शरीरको ही अप्रतीघात क्यों कहा ? समाधान इस सूत्रमें सर्वत्र प्रतीघातका अभाव विवक्षित है । जिस प्रकार तैजस और कार्मण शरीरका लोक पर्यन्त सर्वत्र प्रतीघात नहीं होता वह बात वैक्रियिक और आहारक शरीरकी नहीं है ।
$ 340. इन दोनों शरीरोंमें क्या इतनी ही विशेषता है या और भी कोई विशेषता है । इसी बात को बतलाने के लिए अब आगेका सूत्र कहते हैं
आत्माके साथ अनादि सम्बन्धवाले हैं ॥41॥
8341. सूत्रमें 'च' शब्द विकल्पको सूचित करनेके लिए दिया है। जिससे यह अर्थ हआ
1. - मनन्तो भागः ता., ना । 2 -- परिमाणात् मु.
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