________________
134]
सर्वार्थसिद्धी
[2126 § 312
स्तावज्जीवानां मरणकाले भवान्तरसंक्रमे मुक्तानां चोर्ध्वगमनकाले अनुश्रेण्येव गतिः । देशनियमोsपि ऊर्ध्व जो हादधोगतिः, अधोलोका दूर्ध्वगतिः, तिर्यग्लोकादधोगतिरूर्ध्वा वा तत्रानुश्रेण्येव । पुद्गलानां च या लोकान्तप्रापिणी सा नियमावनुश्रेण्येव । इतरा गतिर्भजनीया ।
8 313. पुनरपि गतिविशेषप्रतिपत्त्यर्थमाहअविग्रहा जीवस्य ॥27॥
$ 314 विग्रहो व्याघातः कौटिल्यमित्यर्थः । स यस्यां न विद्यतेऽसावविग्रहा गतिः । कस्य ? जीवस्य । कीदृशस्य ? मुक्तस्य । कथं गम्यते मुक्तस्येति ? उत्तरसूत्रे संसारिग्रहणादिह मुक्तस्येति विज्ञायते । ननु च 'अनुश्रेणि गतिः' इत्यनेनैव श्रेण्यन्तरसंक्रमाभावो व्याख्यातः । नार्थोऽनेन । पूर्वसूत्रे विश्रेणिगतिरपि क्वचिदस्तीति ज्ञापनार्थमिदं वचनम् । ननु तत्रैव देशकाल - नियम उक्तः । न; अतस्तत्सिद्धेः ।
$ 315. यद्यसङ्गस्यात्मनोऽप्रतिबन्धेन गतिरालोकान्ताववधूतकाला' प्रतिज्ञायते, सवेहस्य पुनर्गतिः किं प्रतिबन्धिनी उत मुक्तात्मवदित्यत आह
विग्रहवती च संसारिणः प्राक् चतुर्भ्यः ॥28॥
दूसरे भवके लिए गमन करते हैं और मुक्त जीव जब ऊर्ध्व गमन करते हैं तब उनकी गति अनुश्रेणि ही होती है। देश नियम यथा - जब कोई ऊर्ध्वलोकसे अधोलोकके प्रति या अधोलोकसे ऊर्ध्व लोकके प्रति आता जाता है। इसी प्रकार तिर्यग्लोकसे अधोलोकके प्रति या अधोलोक से ऊर्ध्वलोकके प्रति आता जाता है तब उस अवस्था में गति अनुश्रेणि ही होती है। इसी प्रकार पुदगलोंकी जो लोकके अन्तको प्राप्त करानेवाली गति होती है वह अनुश्रेणि ही होती है। हाँ, इसके अतिरिक्त जो गति होती है वह अनुश्रेणि भी होती है और विश्रेणि भी। किसी एक प्रकारकी गति होने का कोई नियम नहीं है ।
313. अब फिर भी गति विशेषका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंमुक्त जीवको गति विग्रहरहित होती है ॥27॥
$ 314 विग्रहका अर्थ व्याघात या कुटिलता है । जिस गतिमें विग्रह अर्थात् कुटिलता नहीं होती वह विग्रहरहित गति है । शंका - यह किसके होती है ? समाधान- जीवके । शंकाकिस प्रकार के जीवके ? समाधान - मुक्त जीवके । शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है कि मुक्त जीवके विग्रहरहित गति होती है ? समाधान - अगले सूत्र में 'संसारी' पदका ग्रहण किया है इससे ज्ञात होता है कि इस सूत्र में मुक्त जीवके विग्रहरहित गति ली गयी है। शंका- 'अनुश्रेणि गति:' इस सूत्र से ही यह ज्ञात हो जाता है कि एक श्रेणिसे दूसरी श्रेणिमें संक्रमण नहीं होता फिर इस सूत्र के लिखनेसे क्या प्रयोजन है ? समाधान - पूर्व सूत्र में कहींपर विश्रेणिगति भी होती है इस बातका ज्ञान करानेके लिए यह सूत्र रचा है। शंका-पूर्वसूत्रकी टीका में ही देशनियम और कालनियम कहा है ? समाधान नहीं; क्योंकि उसकी सिद्धि इस सूत्र से होती है ।
8315. मुक्तात्माकी लोकपर्यन्त गति बिना प्रतिबन्धके नियत समयके भीतर होती है। यदि ऐसा आपका निश्चय है तो अब यह बतलाइए कि सदेह आत्माकी गति क्या प्रतिबन्धके साथ होती है या मुक्तात्माके समान बिना प्रतिबन्धके होती है, इसी बातका ज्ञान करानेके लिए आमेका सूत्र कहते हैं—
संसारी जीवको गति विग्रहरहित और विग्रहवाली होती है। उसमें विग्रहवाली गति चार समय से पहले अर्थात् तीन समय तक होती है ।
1. न्तादवगतकाला मु. ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org