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138] सर्वाथसिद्धौ
[2132 8324कानिचिच्छीतानि कानिचिदुष्णानीति। उष्णयोनयस्तैजस्कायिकाः। इतरे त्रिविकल्पयोनयः। केचिच्छीतयोनयः । केचिदुष्णयोनयः । अपरे मित्रयोनय इति । देवनारकैकेन्द्रियाः संवृतयोनयः । बिकलेन्द्रिया विवृतयोनयः । गर्भजाः मिश्रयोनयः। तद्देदाश्चतुरशीतिशतसहस्रसंख्या आगमतो वेदितव्याः । उक्तं च---
"णिच्चिदरधादु सत्त य तरु दस विलिदिएसु छच्चेव ।
सुरणिरयतिरिय चउरो चोदृस मण ए सदसहस्सा ।।" $ 325. एवमेतस्मिन्नवयोनिभेवसंकटे त्रिविधजन्मनि सर्वप्राणभृतामनियमेन प्रसक्ते तववधारणार्थमाह
जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः ॥33॥ 8326. यज्जालवत्प्राणिपरिवरणं विततमांसशोणितं तज्जरायुः । यन्नखत्वक्सदृशमुपातकाठिन्यं शुक्रशोणितपरिवरणं परिमण्डलं तदण्डम् । किंचित्परिवरणमन्तरेण परिपूर्णावयवो योनिनिर्गतमात्र एव परिस्पन्दादिसामोपेतः योतः । जरायो जाता जरायुजाः। अण्डे जाता अण्डजाः। जरायुजाश्च अण्डजाश्च पोताश्च जरायुजाण्डजपोता गर्भयोनयः। $ 327. यद्यमीषां जरायुजाण्डजपोतानां गर्भोऽवध्रियते,अथोपपादः केषां भवतीत्यत आह--
देवनारकारणामुपपादः ॥34॥ देवानां नारकाणां चोपपादो जन्म वेदितव्यम् । किन्हींकी मिश्रयोनियाँ होती हैं। देव, नारकी और एकेन्द्रियोंकी संवत योनियाँ होती हैं। विकलेन्द्रियों की निवत योनियाँ होती हैं। तथा गर्भजोंकी मिश्र योनियां होती हैं। इन सब योनियोंके चौरासी लाख भेद हैं यह बात आगमसे जाननी चाहिए। कहा भी है
'नित्यनिगोद, इतरनिगोद, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंकी सात-सात लाख योनियाँ हैं । वृक्षोंकी दस लाख योनियाँ हैं । विकलेन्द्रियोंकी मिलाकर छह लाख योनियाँ हैं । देव, नारकी और तिर्यंचोंकी चार-चार लाख योनियाँ हैं तथा मनुष्योंकी चौदह लाख योनियाँ हैं।'
8325. इस प्रकार नौ योनियोंसे युक्त तीन जन्म सब जीवोंके अनियमसे प्राप्त हुए, अतः निश्चय करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
जरायुज, अण्डज और पोत जीवोंका गर्भजन्म होता है ॥33॥
8326. जो जालके समान प्राणियोंका आवरण है और जो मांस और शोणितसे बना है उसे जरायु कहते हैं । जो नखकी त्वचाके समान कठिन है, गोल है और जिसका आवरण शुक्र और शोणितसे बना है उसे अण्ड कहते हैं। जिसके सब अवयव बिना आवरणके पूरे हुए हैं और जो योनिसे निकलते ही हलन-चलन आदि सामर्थ्यसे युक्त है उसे पोत कहते हैं। इनमें जो जरसे पैदा होते हैं वे जरायुज कहलाते हैं । जो अण्डोंसे पैदा होते हैं वे अण्डज कहलाते हैं। सूत्रमें जरायुज, अण्डज और पोत इनका द्वन्द्व समास है। ये सब गर्भकी योनियाँ हैं।
327. यदि इन जरायुज, अण्डज और पोत जीवोंका गर्भ जन्म निर्णीत होता है तो अब यह बतलाइए कि उपपाद जन्म किन जीवोंके होता है, अतः इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
. देव और नारकियोंका उपपाद जन्म होता है ॥34॥ 1. मूलाचार. गा. 5.29 एवं 12.63 1 गो. जी. गा.।
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