________________
विषयानुक्रमणिका
[99
183
हैं इसक
194
185
भवनवासियों के दस भेद 182 प्रैवेयकके पूर्व तक कल्प संज्ञा
192 भवनवासी शब्दका अर्थ 182 लौकान्तिक देवोंका निवासस्थान
192 असुरकुमार आदि नामोंमे कुमार पदकी
लौकान्तिक शब्दकी सार्थकता
192 सार्थकता
182 लौकान्तिकोंके आठ भेदोंके नाम
192 भवनवासियोंका निवासस्थान
182 किस दिशामें किस नामवाले लौकान्तिक रहते व्यन्तरोंके आठ भेद
हैं इसका विचार
193 व्यन्तर शब्दका अर्थ
183 'च' शब्दसें समुच्चित अन्य लौकान्तिकोंका व्यन्तरोंका निवासस्थान 183 निर्देश
193 ज्योतिषियोंके पाँच भेद 183 विजयादिकमें द्विचरम देव होते हैं
193 ज्योतिष्क पदकी सार्थकता
183 आदि पदसे सर्वार्थसिद्धिके ग्रहण न होनेका कारण 193 'सूर्याचन्द्रमसौ' पदके पृथक् देनेका कारण 183 द्विचरम शब्दका अर्थ ज्योतिषियोंका पूरे विवरणके साथ निवासस्थान 183 तिर्यग्योनिसे किनका ग्रहण होता है इसका मनुष्य लोकमें ज्योतिषियोंकी निरन्तर मेरु
वित्रार
194 प्रदक्षिणा
184 तिर्थञ्च सब लोकमें रहते हैं अत: उनका क्षेत्र । ज्योतिष्क विमानोंके गमन करनेका कारण 184 नहीं कहा
194 ज्योतिष्कदेव मेरु पर्वतसे कितनी दूर रहकर भवनयासियोंके अवान्तर भेदोंकी उत्कृष्ट आयु 195 प्रदक्षिणा करते हैं
- 184 सौधर्म और ऐशान कल्पमें उत्कृष्ट आयु 195 गतिमान ज्योतिष्कोंके निमित्तसे कालका विभाग 'अधिके' यह अधिकार वचन है इस बातका होता है
निर्देश
195 कालके दो भेद व व्यवहार कालका स्वरूप 185 सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्पमें उत्कृष्ट आयु 196 मनुष्य लोकके बाहर ज्योतिष्क विमान
शेष बारह कल्पोंमें उत्कृष्ट आयु
196 अवस्थित हैं
186 'तु' पदकी सार्थकता
196 वैमानिकोंके वर्णनके प्रसंगसे अधिकार सूत्र 186
कल्पातीत विमानोंमें उत्कृष्ट आयु
196 विमान शब्दका अर्थ व उसके भेदोंका विचार 186
'सर्वार्थसिद्धी' पदको पृथक् ग्रहण करनेका वैमानिकोंके दो भेद
187 कारण
197 वैमानिक देव ऊपर ऊपर निवास करते हैं 187
सौधर्म और ऐशान कल्पमें जघन्य आयु 197
शेष सबमें जधन्य आयुका विचार कितने कल्प विमानों में वे देव रहते हैं इसका
द्वितीयादि नरकोंमें जघन्य आयु विचार 187
198
प्रथम नरक में जघन्य आयु सौधर्म आदि शब्दके व्यवहारका कारण 158
198 मेरु पर्वतकी ऊँचाई व अवगाहका परिमाण 188
भवनवासियोंमें जघन्य आयु
199
व्यन्तरोंमें जघन्य आयु । अधोलोक आदि शब्दोंकी सार्थकता 188
199
व्यन्तरोंमें उत्कृष्ट आयु सौधर्म कल्पका ऋजु विमान कहाँ पर है
ज्योतिषियोंमें उत्कृष्ट आयु इसका निर्देश
199
ज्योतिषियोंमें जघन्य आयु 'नवसु' पदके पृथक् देनेका कारण 189
200 लौकान्तिक देवोंमें आयुका विचार
200 देवोंमें उत्तरोत्तर स्थिति प्रभावादिकृत विशेषता 189 गति आदि शब्दों का अर्थ कहाँके देवके शरीरकी कितनी ऊँचाई है आदि
पाँचवाँ अध्याय का विचार ___190 अजीवकाय द्रव्योंका निर्देश
201 वैमानिक देवों में लेश्याका विचार 190 काय शब्द देनेकी सार्थकता
201 सूत्रार्थकी आगमसे संगति बिठानेका उपक्रम 191 अजीव यह धर्मादिक द्रव्योंकी सामान्य संज्ञा है 201
197
199
189
190
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org