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सम्पदृष्टिके पांच अतिचार प्रशंसा और संस्तवमें अन्तर
सम्यग्दर्शनके आठ अंग होने पर पाँच अतिचार ही क्यों कहे इसका कारण
यतों और शीलों में पाँच-पाँच अतिचारोंको चलानेवाला अधिकार सूत्र
अहिंसाणुव्रत के पांच अतिचार बन्ध आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या सत्याव्रत के पांच अतिचार
मिथ्योपदेश आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या अचौर्याणुव्रत के पांच अतिचार
स्तेनप्रयोग आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या स्वदारसन्तोष व्रतके पाँच अतिचार
परविवाहकरण आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या परिग्रहपरिमाण व्रतकें पाँच अतिचार दिविरमणव्रतके पांच अतिचार
ऊर्ध्वव्यतिक्रम आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या देशविरमण व्रतके पाँच अतिचार
खुलाखा
'स्व' शब्दका अर्थ
दानमें विशेषता लानेके कारण
विधिविशेष शब्दका अर्थ
विधिविशेष आदिका खुलांसा
सर्वार्थसिद्धि
282
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आनयन आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या अनर्थदण्डविरतिव्रत के पाँच अतीचार कन्दर्प आदि प्रत्येक पदकीं व्याख्या सामायिकके पांच अतीचार
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योगदृष्य विधान आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या 287 प्रोषधोपवासके पांच अतिचार अप्रत्यवेक्षित आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या भोगोपभोगपरिसंख्यानव्रतके पाँच अतिचार सचित्त आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या अतिथिसंविभाग शीलके पाँच अतिचार अतिनिक्षेप आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या सल्लेखनाके पाँच अतिचार
जीविताशंसा आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या
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285
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मिथ्यादर्शनके दो भेद और उनकी व्याख्या
282 परोपदेशनिमित्त मिथ्यादर्शनके चार या पाँच 283 भेद व उनका खुलासा
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क्रियावादी आदिके अवान्तर भेद
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अविरतिके 12 भेद
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कषायके 25 भेद
284 मनोयोग आदिके अवान्तर भेद
प्रमादके अनेक भेद
किस गुणस्थान में कितने बन्धके हेतु हैं इसका
विचार
बन्धकी व्याख्या
दान पदकी व्याख्या
अनुग्रह पदका अर्थ
स्वोपकार क्या है और परोपकार क्या है इसका
'सफपायत्वात्' पद देनेका प्रयोजन
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'जीव' पद देनेका प्रयोजन
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286 'कर्मणों योग्यान्' इस प्रकार निर्देश करनेका प्रयोजन 286 दृष्टान्तपूर्वक कर्मरूप परिणमन का समर्थन 'स' पदकी सार्थकता
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बन्धके चार भेद
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288 288 प्रकृतिबन्धके आठ भेद
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आठवाँ अध्याय
बन्धके हेतु
प्रमाद पदकी व्याख्या
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आवरण पदकी व्याख्या
वेदनीय आदि प्रत्येक पदकी व्युत्पत्ति' प्रकृतिबन्धके आठ भेदों के अवान्तर भेद ज्ञानावरण के पांच भेद
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प्रकृति आदि प्रत्येक पदकी दृष्टान्तपूर्वक व्याख्या 294 प्रकृति और प्रदेशबन्धका कारण योग है तथा स्थितिबन्ध और अनुभागबन्धका कारण कषाय है इस बातका निर्देश
अभव्यते मनः पर्यय और केवलज्ञान शक्ति किस
अपेक्षा है
भव्य और अभव्य विकल्पका कारण
दर्शनावरणके नौ भेद
निद्रा आदि पाँचोंकी व्याख्या
वेदनीयके दो भेद
सद्बद्य और असद्वेद्य की व्याख्या
मोहनीय के 28 भेद
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