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सर्वार्थसिद्धौ
[188 41सन्ति। तेजःपद्मलेश्ययोमिथ्यादृष्टयादीनि अप्रमत्तस्थानान्तानि। शुक्ललेश्यायां मिश्यादृष्टयादीनि सयोगकेवल्यन्तानि । अलेश्या अयोगकेवलिनः।।
8 41. भव्यानुवादेन भव्येषु चतुर्दशापि सन्ति । अभव्या आद्य एव स्थाने ।
842. सम्यक्त्वानुवादेन क्षायिकसम्यक्त्वे असंयतसम्यादृष्टयादीनि अयोगकेवल्यन्तानि मन्ति। क्षायोपशमिकसम्यक्त्वे असंयतसम्यग्दष्टयादीनि अप्रमत्तान्तानि । औपशमिकसम्यक्त्वे असंयतसम्यादृष्टयादीनि उपशान्तकषायान्तानि । सासादनसम्यग्दृष्टिः सम्यमिथ्यादृष्टिमिथ्यादृष्टिश्च स्वे स्वे स्थाने।
43. संज्ञानुवादेन संशिसु द्वादश गुणस्थानानि क्षीणकषायान्तानि। असं शिषु एकमेव मिथ्यादृष्टिस्थानम् । तदुभयव्यपदेशरहितः सयोगकेवली अयोगकेवली च ।
844. आहारानुवादेन आहारकेषु मिथ्यादृष्टयादीनि केवल्यन्तानि । अनाहारकेषु विग्रहगत्यापन्नेषु त्रीणि गुणस्थानानि मिथ्यादृष्टिः सासादनसम्यदृष्टिरसंयतसम्यग्दृष्टिश्च । समुद्घातगतः सयोगकेवली अयोगकेवली च । सिद्धाः परमेष्ठिनः अतीतगुणस्थानाः । उक्ता सत्प्ररूपणा।
845. संख्याप्ररूपणोच्यते । सा द्विविधा'सामान्येन विशेषेण च । सामान्येन तावद् जीवा मिथ्यादृष्टयोऽनन्तानन्ताः । सासादनसम्यग्दृष्टयः सम्यमिथ्यादृष्टयोऽसंयतसम्यग्दृष्टयः संयतासंयताश्च पल्योपमासंख्येयभागप्रमिताः । प्रमत्तसंयताः कोटीपृथक्त्वसंख्याः । पृथक्त्वमित्यागमसंज्ञा लेकर असंयत सम्यग्दृष्टि तक चार गुणस्थान हैं । पीत और पद्मलेश्यामें मिथ्यादृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक सात गुणस्थान हैं । शुक्ललेश्यामें मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगकेवली तक तेरह गुणस्थान हैं । किन्तु अयोगकेवली जीव लेश्या रहित हैं।
41. भव्य मार्गणाके अनुवादसे भव्योंमें चौदह ही गुणस्थान हैं । किन्तु अभव्य पहले ही गुणस्थान में पाये जाते हैं।
$ 42. सम्यक्त्व मार्गणाके अनुवादसे क्षायिकसम्यक्त्वमें असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अयोगकेवली तक ग्यारह गुणस्थान हैं। क्षायोपशमिक सम्यक्त्वमें असंयतसम्यग्दष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक चार गुणस्थान हैं। औपशमिक सम्यक्त्वमें असंयतसम्यग्दष्टिसे लेकर उपशान्तकषाय तक आठ गुणस्थान हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और मिथ्यादृष्टि अपने-अपने गुणस्थान में होते हैं।
8 43. संज्ञामार्गणाके अनुवादसे संज्ञियोंमें क्षीणकषाय तक बारह गुणस्थान हैं। असंज्ञियोंमें एक ही मिथ्यादृष्टि गुणस्थान है । संज्ञी और असंज्ञी इस संज्ञासे रहित जीव सयोगकेवली और अयोगकेवली इन दो गुणस्थानवाले होते हैं।
844. आहार मार्गणाके अनुवादसे आहारकोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर सयोगकेवली तक तेरह गुणस्थान होते हैं। विग्रहगतिको प्राप्त अनाहारकोंमें मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि ये तीन गुणस्थान होते हैं। तथा समुद्घातगत सयोगकेवली और अयोगकेवली जीव भी अनाहारक होते हैं । सिद्ध परमेष्ठी गुणस्थानातीत हैं। इस प्रकार सत्प्ररूपणाका कथन समाप्त हुआ।
845. अब संख्या प्ररूपणाका कथन करते हैं । सामान्य और विशेषकी अपेक्षा वह दो प्रकारकी है। सामान्यकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत इनमें से प्रत्येक गुणस्थानवाले जीव गल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। प्रमत्त संयतोंकी संख्या कोटिपृथक्त्व है। पृथक्त्व आगमिक संज्ञा 1. द्विविधा । सामान्येन तावत्-मु.।
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