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26] सर्वार्थसिद्धौ
[118847 - कोटीकोट्यः । सासादनसम्यग्दृष्ट्यादयः संयतासंयतान्ताः संख्येयाः। प्रमत्तादीनां सामान्योक्ता संख्यः । देवगतौ देवा मिथ्यादष्टयोऽसंख्येयाः श्रेणयः प्रतरासंख्येयभागप्रमिताः। सासादनसम्रग्दृष्टिसम्यमिथ्यादृष्ट्य संयतसम्यग्दृष्टयः पल्मोपमासंख्येयभागप्रमिताः ।
847. इन्द्रियानुवादेन एकेन्द्रिया मिथ्यादृष्टयोऽनन्तानन्ताः । द्वीन्द्रियास्त्रीन्द्रियाश्चतुरिप्रिया असंख्येयाः श्रेणयः प्रतरासंख्येयभागमिताः । पञ्चेन्द्रियेषु मिथ्यादृष्टयोऽसंख्येयाः श्रेणयः प्रतरासंख्येयभागप्रमिताः । सासादनसम्यग्दृष्ट्यादयोऽयोगकेवल्यन्ताः सामान्योक्तसंख्याः ।
848. कायानुवादेन पृथिवीकायिका अकायिकास्तेजःकायिका वायुकायिका असंख्येया लोकाः । वनस्पशियिका: अनन्तानन्ताः। त्रसकाधिकसंख्या पञ्चेन्द्रियवत ।
49. यो वादेन मनोयोगिनो वायोगिनश्च मिथ्यादृष्टयोऽसंख्येयाः श्रेणयः तरासंख्येयभागप्रमिताः । काययोगिनो मिथ्यादृण्टयोऽनन्तानन्ताः । त्रयाणामपि योगिनां सासादनमायादयः संयतासंयतान्ताः पल्योपमालंख्येयभागप्रमिताः । प्रमत्तसंयतादयः सपोगकेवत्यन्ताः संख्येयाः । अयोगकेवलिनः सामान्योक्तसंख्याः।।
850. वेदानुवादेन स्त्रीवेदाः बेदाश्च मिथ्यादृष्टयोऽसंख्येयाः श्रेणयः प्रतरासंख्येय भागप्रमिताः । नपुंसकवेदा मिथ्यादृष्टयोऽनन्तानन्ताः । स्त्रीवेदा नपुंसकवेदाश्च सासादनसम्यग्दृष्टयादयः संयतासंयतान्ताः सामान्योक्तसंख्याः। प्रमतसंयतादयोऽनिवृत्तिबादरान्ताः संख्येयाः। हैं जो जगश्रेणियां जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्याष्टि और असंयतसम्यग्दप्टि इनमें से प्रत्येक गुणस्थानवाले देव पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं।
8 47. इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त हैं । दोइन्द्रिय, तीनइन्द्रिय और चार इन्द्रिय जीव असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण हैं जो जगश्रेणियाँ जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। पंचेन्द्रियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण हैं जो जगश्रेणियां जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। सासादनसम्यग्दष्टिसे लेकर अयोगकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवाले पंचेन्द्रियोंकी वही संख्या है जो सामान्यसे कह आये हैं।
648. काय मार्गणाके अनुवादसे पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक नीवोंकी संख्या असंख्यात लोकप्रमाण है। वनस्पति कायिक जीव अनन्तानन्त हैं और त्रसकायिक जीवोंकी संख्या पंचेन्द्रियोंके समान है।
849. योग मार्गणाके अनुवादसे मनोयोगी और वचनयोगी मिथ्यादष्टि जीव असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण हैं जो जगश्रेणियाँ जगप्रतरके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। काययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त हैं। तीनों योगवालोंमें सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक प्रत्येक गुणस्थानवाले जीव पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। प्रमत्तसंयत से लेकर सयोगकेवली गुणस्थान तकके तीनों योगवाले जीव प्रत्येक गुणस्थानमें संख्यात हैं। अयोगकेवलियोंकी वही संख्या है जो सामान्यसे कह आये हैं।
850. वेद मार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदवाले और पूरुषवेदवाले मिथ्यादष्टि जीव असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण हैं जो जगश्रेणियाँ जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । नपुंसकवेदवाले मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि से लेकर संयतासंयत तक स्त्रीवेदवाले
1 योगिषु मिथ्या-मु । -योगेषु मिथ्या-दि. 2। 2. - नन्ता:। त्रियोगिनां सासा-मु.। 3. वैसे तो त्रसकायिकोंकी संख्या पचेन्द्रियोंकी संख्यासे अधिक है। पर असंख्यात सामान्य की अपेक्षा यहाँ त्रसकायिकों की संख्याको पंचेन्द्रियोंकी संख्याके समान बतलाया है।
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