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प्रथमोऽध्यायः वष्टिरित्यौदयिको भावः । सासादनसम्यग्दृष्टिरिति पारिणामिको भावः । सम्यमिथ्यादृष्टिरिति क्षायोपशमिको भावः । असंयतसम्यग्दृष्टिरिति औपशमिको वा क्षायिको वा क्षायोपशमिको वा भावः । असंयतः पुनरौदयिकेन भावेन । संयतासंयतः प्रमत्तसंयतोऽप्रमत्तसंयत इति क्षायोपशमिको भावः । चतुर्णामपशमकानामौपशमिको भावः । चतुर्ष क्षपकेष सयोगायोगकेवलिनोश्च क्षायिको भावः।
134. विशेषेण गत्यनुवादेन नरकगतौ प्रयमायां पृथिव्यां नारकाणां मिथ्यादृष्टयाद्यसंयतसम्यग्दृष्टयन्तानां सामान्यवत् । द्वितीयादिष्वा सप्तम्या मिथ्यादृष्टिसासादनसम्यग्दृष्टिसम्यङ्मिथ्यादृष्टीनां सामान्यवत् । असंयतसम्यग्दष्टेरौपशमिको वा क्षायोपशमिको वा भावः । असंयतः पुनरोदयिकेन भावेन । निर्गग्गतौ तिरश्चां मिथ्यादृष्ट्यादिसंयतासंयतान्तानां सामान्यवत् । मनुष्यगतो मनुष्याणां मिथ्यादृष्टयाद्ययोगकेवल्यन्तानां सामान्यवत् । देवगतौ देवानां मिथ्यादृष्टयाधसंयतसम्यग्दृष्टयन्तानां सामान्यवत् ।
$ 135. इन्द्रियानुवादेन एकेन्द्रियविकलेन्द्रियाणामौदयिको भावः । पञ्चेन्द्रियेषु मिथ्यादृष्टयाद्ययोगकेवल्यन्तानां सामान्यवत् ।
8 136. कायानुवादेन स्थावरकायिकानामौदयिको भावः । त्रसकायिकानां सामान्यमेव ।
$ 137. योगानुवादेन कायवाङ्मनसयोगिनां मिय्यादृष्टयादिसयोगकेवल्यन्तानां च सामान्यकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि यह औदयिकभाव है। सासादनसम्यग्दृष्टि यह पारिणामिक भाव है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि यह क्षायोपशमिक भाव है। असंयतसम्यग्दृष्टि यह औपशमिक, क्षायिक या क्षायोपशमिक भाव है। किन्तु इसमें असंयतपना औदयिक भावकी अपेक्षा है। संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत यह क्षायोपशमिक भाव है। चारों उपशमकोंके औपशमिक भाव है। चारों क्षपक, सयोगकेवली और अयोगकेवलीके क्षायिक भाव है।
8134. विशेषकी अपेक्षा गति मार्गणाके अनुवादसे नरक गतिमें पहली प्रथिवी में नारकियोंके मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक ओघके समान भाव है। दूसरी से लेकर सातवीं पृथिवी तक मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नारकियोंके ओघके समान भाव है। असंयतसम्यग्दष्टिके औपशमिक या क्षायोपशमिक भाव है। किन्तु इसमें असंयतपना औदयिक भावकी अपेक्षा है। तिर्यंचगतिमें तिर्यंचोंके मिथ्यादष्टिसे लेकर संयतासंयत तक ओघके समान भाव है। मनुष्यगतिमें मनुष्योंके मिथ्यादृष्टि से लेकर अयोगकेवली तक ओधके समान भाव है। देवगतिमें देवोंके मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयत सम्यग्दृष्टि तक ओषके समान भाव है।
8135. इन्द्रिय मार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रियोंके औदयिक भाव है। पंचेन्द्रियोंमें मिथ्यादष्टिसे लेकर अयोगकेवली तक प्रत्येक गूणस्थानका ओघके समान भाव है।
8136. कायमार्गणाके अनुवादसे स्थावरकायिकोंके औदयिक भाव है। त्रसकायिकोंके ओघके समान भाव है।
8137. योगमार्गणाके अनुवादसे काययोगी, वचनयोगी और मनोयोगी जीवोंके मिथ्या1. सासादनसम्यक्त्व यह दर्शनमोहनीय कर्मके उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशमसे नहीं होता इस लिए निष्कारण होनेसे पारिणामिक भाव है। 2. सम्यग्मिथ्यात्वकर्मका उदय होने पर श्रमानाथद्धानात्मक मिला हआ जीव परिणाम होता है। उसमें श्रद्धानांश सम्यत्वव अंश है। सम्यग्मिथ्यात्व कर्मका उदय उसका अभाव करनेमें असमर्थ है इस लिए सम्यग्मिथ्यात्व यह क्षायोपशमिक भाव है।
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