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सर्वार्थसिद्धौ
[1133 § 250
है, इसलिए यहाँ इस विषय में विशेष नहीं लिखा गया है। ऋजुसूत्र नय वर्तमान पर्याय द्वारा करते वस्तुको ग्रहण करता है और शब्दादिक नय शब्दों द्वारा वर्तमान पर्यायमुखेन वस्तुको ग्रहण: हैं, इसलिए इन नयोंका विषय द्वित्व नहीं हो सकता। यही कारण है कि शब्दनयके विषयका . निरूपण करते समय विशेषण विशेषभाव आदिसे एक साथ प्रयुक्त किये गये एकवचनान्त और द्विवचनान्त आदि शब्दके वाच्य आदि इसके अविषय बतलाये हैं और समभि ढ़के विषयका निरूपण करते समय एक शब्दके अनेक अर्थ या एक अर्थ में अनेक शब्दोंका प्रयोग करना इसका अविषय बतलाया है, क्योंकि एकवचनान्त शब्दका वाच्य अन्यार्थ है और द्विवचनान्त शब्दका वाच्य अन्यार्थ है, इसलिए शब्द नय इनको एक वाच्य रूपसे ग्रहण नहीं कर सकता । इसी प्रकार गो शब्दका गाय अर्थ अन्यार्थ है और वाणीरूप अर्थ अन्यार्थ है, इसलिए समभिरूढ़ निय एक शब्दद्वारा इन अर्थोंको ग्रहण नहीं कर सकता। इसी प्रकार सभी नयोंके विषयको समझना चाहिए । नय अंश द्वारा वस्तुको स्पर्श करनेवाला एक विकल्प है। प्रमाण ज्ञानके समान यह समग्र वस्तुको स्पर्श नहीं करता, इसलिए ही निरपेक्ष नयको मिथ्या और सापेक्ष नयको सम्यक् कहा गया है। इस विषयका विशेष खुलासा और सब नयोंकी उत्तरोत्तर सूक्ष्मता का विचार मूलमें किया ही है। इस प्रकार नय सात हैं और वे द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन . दो भागों में बटे हुए हैं यह निश्चित होता है ।
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इस प्रकार सर्वार्थसिद्धि नामावली तत्त्वार्थवृत्तिमें प्रथम अध्याय समाप्त हुआ ।
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