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--2114 $ 288] द्वितीयोऽध्यायः
[125 उत्तरत्रयेऽपि सद्भावात् । कायः शरीरम् । पृथिवीकायिकजीवपरित्यक्तः पृथिवीकायो मृतमनुष्याविकायवत् । पृथिवीकायोऽस्यास्तीति पृथिवीकायिकः । तत्कायसंबन्धवशीकृत आत्मा। समवाप्तपृथिवीकायनामकर्मोदयः कार्मणकाययोगस्थो यो न तावत्पृथिवीं कायत्वेन गृह्णाति स पथिवीजीवः । एवमबादिष्वपि योज्यम् । एते मञ्चविधाः प्राणिनः स्थावराः। कति पुनरेषां प्राणाः ? . चत्वारः-स्पर्शनेन्द्रियप्राणः कायबलप्राणः उच्छ वासनिश्वासप्राणः आयुःप्राणश्चेति । 8287. अथ त्रसाः के ते, इत्यत्रोच्यते
द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः ॥14॥ $ 288. वे इन्द्रिये यस्य सोऽयं द्वीन्द्रियः । द्वीन्द्रिय आविर्येयां ते द्वीन्द्रियावयः । 'आदि'शब्दो व्यवस्थावाची । क्व व्यवस्थिताः ? आगमे । कयम् ? द्वीन्द्रियस्त्रीन्द्रियश्चतुरिन्द्रियः पञ्चेन्द्रियश्चेति । तद्गुणसंविज्ञानवृत्तिग्रहणाद् द्वीन्द्रियस्याप्यन्तर्भावः। कति पुनरेषां प्राणाः? द्वीन्द्रियस्य तावत् षट् प्राणाः, पूर्वोक्ता एव रसनवाक्प्राणाधिकाः । त्रीन्द्रियस्य सप्त त एव प्राणप्राणाधिकाः । चतुरिन्द्रियस्याष्टौ त एव चक्षुःप्राणाधिकाः। पञ्चेन्द्रियस्य तिरश्चोऽसंझिनो नव त एव श्रोत्रप्राणाधिकाः । संज्ञिनो दश त एव मनोबलप्राणाधिकाः ।
अर्थात् विस्तार आदि गुणवाली होनेके कारण यह पृथिवी कहलाती है। अथवा पृथिवी यह सामान्य वाची संज्ञा है, क्योंकि आगेके तीन भेदोंमें भी यह पायी जाती है। कायका अर्थ शरीर है. अतःपथिवीकायिक जीव द्वारा जो शरीर छोड़ दिया जाता है वह पृथिवीकाय कहलाता है। यथा मरे हुए मनुष्य आदिकका शरीर । जिस जीवके पृथिवीरूप काय विद्यमान है उसे पृथिवीकायिक कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जीव पृथिवीरूप शरीरंके सम्बन्धसे युक्त है । कार्मणकाययोगमें स्थित
रूपसे ग्रहण नहीं किया है तबतक वह प्रथिवीजाव कहलाता है। इसी प्रकार जलादिकमें भी चार-चार भेद कर लेने चाहिए। ये पांचों प्रकारके प्राणी स्थावर हैं । शंका-इनके कितने प्राण होते हैं ? समाधान-इनके चार प्राण होते हैं-स्पर्शन इन्द्रियप्राण, कायबलप्राण, उच्छ्वास-निःश्वासप्राण और आयुःप्राण ।
8287. अब त्रस कौन हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं---- दो इन्द्रिय आदि त्रस हैं ॥14॥
8288. जिन जीवोंके दो इन्द्रियाँ होती हैं उन्हें दो-इन्द्रिय कहते हैं। तथा जिनके प्रारम्भमें दो इन्द्रिय जीव हैं वे दो-इन्द्रियादिक कहलाते हैं । यहाँ आदि शब्द व्यवस्थावाची है। शंका---ये कहाँ व्यवस्थित होकर बतलाये गये हैं ? समाधान----आगम में । शंका---किस क्रमसे ? समाधान---दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इस क्रमसे व्यवस्थित हैं। यहाँ तद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि समासका ग्रहण किया है, अतः द्वीन्द्रियका भी अन्तर्भाव हो जाता है। शंका-इन द्वीन्द्रिय आदि जीवोंके कितने प्राण होते हैं ? समाधान----पूर्वोवत चार प्राणोंमें रसनाप्राण और वचनप्राण इन दो प्राणोंके मिला देनेपर दो इन्द्रिय जीवोंके छह प्राण होते हैं। इनमें घ्राणप्राणके मिला देनेपर तीनइन्द्रिय जीवके सात प्राण होते हैं। इनमें चक्षप्राणके मिला देनेपर चौइन्द्रिय जीवके आठ प्राण होते हैं। इनमें श्रोत्रप्राणके मिला देनेपर तिर्यंच असंज्ञीके नौ प्राण होते हैं। इनमें मनोबलके मिला देनेपर संज्ञी जीवोंके दस प्राण होते हैं। 1. जीवः । उक्तं च--पुढवी पुढवीकायो पुढवीकाइय पुढविजीवो य । साहारणोपमुक्को सरीरगहिदो भवंतरिदो। एव-मु.। 2. 'बहुबीही तद्गुणसं विज्ञानमपि-परि.-शे. प. 4, 4। 3. बलाधिकाः, आ., दि. 1,दि.21
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