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-118 $ 130] प्रथमोऽध्यायः
[59 जीवापेक्षया जघन्येनकः समयः । उत्कर्षेण चतुर्दश रात्रिदिनानि । एकजीवं प्रति जघन्यमुत्कृष्टं धान्तमुहूर्तः। प्रमत्ताप्रमत्तसंयतयो नाजीवापेक्षया जघन्येनकः समयः । उत्कर्षेण पंचवश रात्रिदिनानि । एकजीवं प्रति जघन्यमुत्कृष्टं चान्तर्मुहूर्तः। त्रयाणामुपशमकानां नानाजीवापेक्षया जघन्येनकः समयः । उत्कर्षेण वर्षपृथक्त्वम् । एकजीवं प्रति जघन्यमुत्कृष्टं चान्तर्मुहूर्तः । उपशान्तकषायस्य नानाजीवापेक्षया सामान्यवत् । एकजीवं प्रति नास्त्यन्तरम् । सासादनसम्यग्दृष्टिसम्यामिथ्यादृष्टयो नाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । उत्कर्षेण पल्योपमासंख्येयभागः। एकजीव प्रति नास्त्यन्तरम् । मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया एकजीवापेक्षया च नास्त्यन्तरम् ।
__$130. संज्ञानुवादेन संशिषु मिथ्यावृष्टेः सामान्यवत् । सासादनसम्यग्दृष्टिसम्यङ्मिभ्यादृष्टयो नाजीवापेक्षया सामान्यवत् । एकजीवं प्रति जघन्येन पल्योपमासंख्येयभागोऽन्तर्मुहूर्तश्च । उत्कर्षेण सागरोपमशतपृथक्त्वम् । असंयतसम्यग्दृष्टचाद्यप्रमत्तान्तानां नानाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । उत्कर्षेण सागरोपमशतपृथक्त्वम् । चतुर्णामुपशमकाना नानाजीवापेक्षया सामान्यवत् । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः। उत्कर्षेण सागरोपमशतपथक्त्वम् । चतुर्णा क्षपकाणां सामान्यवत् । असंजिनां नानाजीवापेक्षयकजीवापेक्षया च नास्त्यन्तरम् । तदुभयव्यपदेशरहितानां सामान्यवत् ।
अन्तर अन्तमहर्त है। संयतासंयतका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चौदह दिन रात्रि है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्महर्त है। प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह दिन रात है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । तीन उपशमकोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। उपशान्तकषायका नामा जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है। सासादनसम्यग्दष्टि और सम्यग्मिथ्याष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है। मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा और एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है।
8 130 संज्ञा मार्गणाके अनुवादसे संजियोंमें मिथ्यादृष्टिका अन्तर ओघके समान है। सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ओघके समान है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग और अन्त उत्कष्ट अन्तर सौ सागरोपम पृथक्त्व है। असंयतसम्यग्दष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक प्रत्येक गुणस्थानका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है । एक जीवको अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कष्ट अन्तर सौ सागरोपम पृथक्त्व है। चारों उपशमकोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर सो सागरोपम पृथक्त्व है । चारों क्षपकोंका अन्तर ओघके समान है । असंज्ञियोंका नाना जीव और एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है । संज्ञी और असंज्ञो व्यवहारसे रहित जीवोंका अन्तर ओषके समान है। 1. क्योंकि उपशमश्रेणिसे उतर कर उपशम सम्यक्त्व छुट जाता है। यदि अन्तम हर्त बाद पुन: उपशमश्रेणिपर चढ़ता है तो वेदकसम्यक्त्व पूर्वक दूसरी बार उपशम करना पड़ता है। यही कारण है कि उपक्षम सम्यक्त्वमें एक जीवकी अपेक्षा उपशान्तकषायका अन्तर नहीं प्राप्त होता ।
तथा
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