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11114 § 186]
प्रथमोऽध्यायः
$ 184. अथास्यात्मलाभे किं निमित्तमित्यत आह
तदिन्द्रियानिन्द्रियमित्तम् ॥14॥
8 185. इन्दतीति इन्द्र आत्मा । तस्य ज्ञस्वभावस्य तदावरणक्षयोपशमे सति स्वयमर्थान् ग्रहीतुमसमर्थस्य यदर्थोपलब्धि लिंगं तदिन्द्रस्य लिंगमिन्द्रियमित्युच्यते । अथवा लीनमयं मयतीति लिगम् । आत्मनः सूक्ष्मस्यास्तित्वाधिगमे लिंगमिन्द्रियम् । यथा इह धूमोऽग्नेः । ऐवमिदं स्पर्शनादि करणं नासति कर्तर्यात्मनि भवितुमर्हतीति ज्ञातुरस्तित्वं गम्यते । अथवा इन्द्र इति नामकर्मोच्यते । तेन सृष्टमिन्द्रियमिति । तत्स्पर्शनादि उत्तरत्र वक्ष्यते ।
$ 186 अनिन्द्रियं मनः अन्तःकरणमित्यनर्थान्तरम् । कथं पुनरिन्द्रियत्र तिषेधेन इद्रलिंगे एवं मनसि अमिन्द्रिय शब्दस्य वृत्तिः । ईषदर्थस्य नञः प्रयोगात् । ईषदिन्द्रियमनिन्द्रियमिति ।
की अपेक्षा संग्रह नहीं किया गया है, किन्तु मतिज्ञानके पर्यायवाची नामोंकी अपेक्षासे ही संग्रह किया गया है । सूत्रकारने इसी अर्थ में इनका अनर्थान्तररूपसे निर्देश किया है। इस सूत्र की टीका में इन विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है । 1. मति आदि शब्दोंके पर्यायवाची होनेमें हेतु । 2. मति आदि शब्दोंकी व्युत्पत्ति । 3. मति आदि शब्दोंमें प्रकृति भेद होनेपर भी उनके पयायवाचित्वका दृष्टान्त द्वारा समर्थन । 4. समभिरूढनयकी अपेक्षा इनमें अर्थ भेद होने पर भी प्रकृत में ये पर्यायवाची क्यों हैं इनमें पुनः युक्ति । 5. सूत्रमें आये हुए 'इति' शब्दकी सार्थकता ।
$ 184. मतिज्ञानके स्वरूप लाभमें क्या निमित्त है अब यह बतलाने के लिए आगेका सूत्र
कहते हैं
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वह (मतिज्ञान) इन्द्रिय और मनके निमित्तसे होता है ॥14॥
8 185. इन्द्र शब्दका व्युत्पत्ति लभ्य अर्थ है 'इन्दतीति इन्द्रः' जो आज्ञा और ऐश्वर्यवाला है वह इन्द्र । इन्द्र शब्दका अर्थ आत्मा है । वह यद्यपि ज्ञस्वभाव है तो भी मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमके रहते हुए स्वयं पदार्थों को जानने में असमर्थ है, अतः उसको पदार्थके जानने में जो लिंग ( निमित्त) होता है वह इन्द्रका लिंग इन्द्रिय कही जाती है । अथवा जो लीन अर्थात् गूढ़ पदार्थका ज्ञान कराता है उसे लिंग कहते हैं। इसके अनुसार इन्द्रिय शब्दका यह अर्थ हुआ कि जो सूक्ष्म आत्मा के अस्तित्वका ज्ञान कराने में लिंग अर्थात् कारण है उसे इन्द्रिय कहते हैं । जैसे लोकमे धूम अग्निका ज्ञान कराने में कारण होता है। इसी प्रकार ये स्पर्शनादिक करण कर्त्ता आत्माके अभाव में नहीं हो सकते हैं, अतः उनसे ज्ञाताका अस्तित्व जाना जाता है। अथवा इन्द्र शब्द नामकर्मका वाची है | अतः यह अर्थ हुआ कि उससे रची गयी इन्द्रिय हैं । वे इन्द्रियाँ स्पर्शनादिक हैं जिनका कथन आगे करेंगे। अनिन्द्रिय, मन और अन्तःकरण ये एकार्थवाची नाम हैं ।
8186 शंका - अनिन्द्रिय शब्द इन्द्रियका निषेधपरक है अतः इन्द्रके लिंग मनमें अनिन्द्रिय शब्दका व्यापार कैसे हो सकता है ? समाधान -यहाँ नत्र का प्रयोग 'ईषद्' अर्थ में किया है इन्द्रिय अनिन्द्रिय । यथा अनुदरा कन्या । इस प्रयोगमें जो अनुदरा शब्द है उससे उदरका अभाव रूप अर्थ न लेकर ईषद् अर्थ लिया गया है उसी प्रकार प्रकृतमें जानना चाहिए। शंका-अनिन्द्रय
1. - लब्धिनिमित्त लिंग मु. 2. 'भोगसाधनानीन्द्रियाणि । न्या. भा. 11119 ! 3. 'भगवां हि मुम्मासंबुद्धो परमिस्सरियमावतो इन्दो, कुसलाकुसलं च कम्मं, कम्मेसु कस्सचि इस्सरियाभावतो । तेनेत्थ कम्मसज्जनितानि ताव इंद्रियानि कुसलाकुसलं कम्मं उल्लिगेन्ति तेन च सिद्वानीति इन्दलिगट्ठेन इन्दसिट्ठट्ठेन च इंदियानि ।.वि. म. पू. 3431
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