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सर्वार्थ सिद्धौ
[1188136 -- सामान्यमेव ।
5138. वेदानुवादेन स्त्रीपुन्नपुंसकवेदानामवेदानां च सामान्यवत् । 2139. कपायानुवादेन क्रोधमानमायालोभकषायाणामकषायाणां च सामान्यवत् ।
8140. ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञानिश्रुताशानिविभङ्गज्ञानिनां मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवल ज्ञानिनां च सामान्यवत । 8141. संयमानुवादेन सर्वेषां संयतानां संयतासंयतानां च सामान्यवत । $142. दर्शनानुवादेन चक्षुर्दर्शनाचक्षुर्दर्शनावधिदर्शनकेवलदर्शनिनां सामान्यवत् । 6143. लेश्यानुवादेन षडलेश्यालेश्यानां च सामान्यवत ।
8144. भव्यानुवादेन भव्यानां मिथ्यादृष्टयाद्ययोगकेवल्यन्तानां सामान्यवत् । अभव्यान पारिणामिको भावः ।
8145. सम्यक्त्वानुवादेन क्षायिकसम्यग्दृष्टिषु असंयतसम्यग्दृष्टेः क्षायिको भावः । क्षायिक सम्यक्त्वम् । असंयतत्वमौदयिकेन भावेन । संयतासंयतप्रमताप्रमत्तसंयतानां क्षायोपशमिको भावः । क्षायिकं सम्यक्त्वम् । चतुर्णामुपशमकानामौपशमिको भावः । क्षायिकं सम्यक्त्वम् । शेषाणां सामान्यक्त । क्षायोपमिकसम ष असंयतसम्यग्दष्टेःक्षायोपशमिको भावः । क्षायोपशमिक दष्टि से लेकर सयोगकेवली तक और अयोगकेवलीके ओघके समान भाव है।
38. वेद मार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी और वेदरहित जीवोंके ओघके समान भाव है।
8139. कषाय मार्गगाके अनुवादसे क्रोध कषायवाले, मान कषायवाले, माया कषायवाले, लोभ कषायवाले और कषाय रहित जीवोंके समान भाव है।
8140. ज्ञान मार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी, ताज्ञानी, विभंगज्ञानी, मतिज्ञानी, श्रतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी जीवोंके ओघके समान भाव हैं।
6141. संयम मार्गणाके अनुवादसे सब संयतोंके, संयतासंयतोंके और असंयतोंके ओघके समान भाव हैं।
6142. दर्शन मार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले और केवलदर्शनवाले जीवोंके ओघके समान भाव हैं।
8143. लेश्यामार्गणाके अनुवादसे छहों लेश्यावाले और लेश्या रहित जीवोंके ओघके समान भाव हैं।
8144. भव्य मार्गणाके अनुवादसे भव्योंके मिथ्यादृष्टि से लेकर अयोगकेवली तक ओघके समान भाव हैं। अभव्योंके पारिणामिक भाव हैं।
8145. सम्यक्त्व मार्गणाके अनुवादसे क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टिके क्षायिक भाव है। क्षायिक सम्यक्त्व है। किन्तु असंयतपना औदयिक भाव है। संयतासंय प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतके क्षायोपमिक भाव है । क्षायिक सम्यक्त्व है। चारों उपशमकोंके औपशमिक भाव है। क्षायिक सम्यक्त्व है। शेष गुणस्थानोंका ओघके समान भाव है। क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टिके क्षायोपशमिक भाव है। क्षायोपशमिक 1. यों तो ये भाव दर्शनमोहनीय और चारित्र मोहनीयके उदयादिकी अपेक्षा बतलाये गये हैं। किन्तु अभव्योंके 'अभव्यत्व भाव क्या है इसकी अपेक्षा भावका निर्देश किया है । यद्यपि इससे क्रम भंग हो जाता है तथापि विशेष जानकारीके लिए ऐसा किया है। उनका बन्धन सहज ही अत्रुटयत सन्तानवाला होनेसे उनके पारिणामिक भाव कहा है यह इसका तात्पर्य है।
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