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- 118846] - प्रथमोऽध्यायः
[25 तिसृणां कोटीनाममुपरि नवानामयः । अप्रमत्तसंयताः संख्येयाः । चत्वार उपशमकाः प्रवेशेन एको वा द्वौ वा त्रयो वा । उत्कर्वेण चतुःपञ्चाशत् । स्वकालेन समुदिताः संख्येयाः । चत्वारः क्षपका अयोगकेदलिनश्च प्रवेशेन एको वा द्वौ वा त्रयो वा । उत्कर्षेणाष्टोत्तरशतसंख्याः। स्वकालेन समुदिताः संख्येयाः । सयोगकेवलिनः प्रवेशेन एको वा द्वौ वा त्रयो वा। उत्कर्षेणाष्टोत्तरशतसंख्याः। स्वकालेन समुदिताः शतसहस्रपयवत्वसंख्याः। .
846. विशेषेण गत्यनुवादेन नरकगतो प्रथमायां पृथिव्यां नारका मिथ्यादृष्टयोऽसंख्येयाः श्रेणयः प्रतरासंख्येय भागप्रमिताः । द्वितीयादिष्वा सप्तम्या मिथ्यादृष्टयः श्रेण्यसंख्येयभागप्रमिताः । स चांसंस्पेयभागः असंख्येगा योजन कोटीकोट्यः । सर्वासु पृथिवीषु सासादनसम्यग्दृष्टयः सम्यहमियादृष्टयोऽसयससम्यग्दृयश्व पल्यापनासंस्थेवभागप्रमिताः।तिर्यग्गतौ तिरश्चांमध्ये मिथ्यादृष्टयोऽनन्तानन्ताः। सासादनसम्यादृष्ट्यादयः संयतासंयतान्ताः पल्योपमा संख्येयभागप्रमिताः। मनुष्यगतो मनुष्या मिथ्यादृष्टयः श्रेग्यसंख्य भागममिताः । स चासंखोयभागः असंख्येया योजनहै । इससे तीन से ऊपर और नौके नीचे मध्यकी किसी संख्याका बोध होता है। अप्रमत्तसंयत जीव संख्यात हैं। चारों उपशमक गुणस्थानवाले जीव प्रवेशकी अपेक्षा एक, दो या तीन हैं, उत्कृष्टरूपसे चौवन हैं और अपने कालके द्वारा संचित हुए उक्त जीव संख्यात हैं। चारोंक्षपक और अयोगकेवली प्रवेशकी अपेक्षा एक, दो या तीन हैं, उत्कृष्टरूपसे एकसौ आठ हैं और अपने कालके द्वारा संचित हुए उक्त जीव संख्यात हैं। सयोगकेवली जीव प्रवेशकी अपेक्षा एक, दो या तीन हैं, उत्कृष्टरूपसे एकसौ आठ हैं और अपने कालके द्वारा संचित हुए उक्त जीव लाखपृथक्त्व हैं।
846. विशेषकी अपेक्षा गति मार्गणाके अनुवादसे नरकगतिमें पहली पृथिवीमें मिथ्यादष्टि नारकी असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण हैं जो जगश्रेणियाँ जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक पृथिवीमें मिथ्यादृष्टि नारकी जगश्रेणीके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं, जो जगश्रेणीका असंख्यातवाँ भाग असंख्यात कोडाकोड़ी योजनप्रमाण है। सब पृथिवियोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि नारकी पत्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । तिर्यंचगतिमें मिथ्यादृष्टि तिर्यंच अनन्तानन्त हैं। सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक प्रत्येक गुणस्थानवाले तिर्यच पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । मनुष्यगतिमें मिथ्यादृष्टि मनुष्यजग श्रेणीके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं, जो जगश्रेणीका असंख्यातवाँ भाग असंख्यातकोड़ाकोड़ी योजन प्रमाण है। सासादनसम्यग्दृष्टिसे. लेकर संयतासंयत तक प्रत्येक गुणस्थानवाले मनुष्य संख्यात हैं। प्रमत्तसंयत आदि मनुष्योंकी वही संख्या है जो सामान्यसे कह आये हैं । देवगतिमें मिथ्यादृष्टि देव असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण' 1. तिरश्चां मिथ्या—मु । 2. सात राजु लम्बी और एक प्रदेशप्रमाण चौड़ी आकाश प्रदेश-पंक्तिको जगश्रेणि कहते हैं । ऐसी जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण जगश्रेणियोंमें जितने प्रदेश होते हैं उतने प्रथम नरकके मिथ्यादृष्टि नारकी हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। 3. जगश्रेणिके वर्गको जगप्रतर कहते हैं। 4. जगश्रेणि में ऐसे असंख्यातका भाग दो जिससे असंख्यात योजन कोटाकोटि प्रमाण आकाश प्रदेश प्राप्त हों, इतनी दूसरे आदि प्रत्येक नरकके नारकियोंकी संख्या है । यह संख्या उत्तरोत्तर हीन है। 5. इसमें संमूच्छिम मनुष्यों की संख्या सम्मिलित है। 6. सासादनसम्यग्दष्टि आदि गुणस्थानवाले मनुष्योंकी संख्या जीवस्थान द्रव्य प्रमाणानुगमकी धवला टीकामें विस्तारसे बतायी है। 7. मिथ्यादष्टि देवोंकी संख्या का खुलासा प्रथम नरक के मियादृष्टि नारकियों के खुलासाके समान जानना चाहिए । आगे भी इसी प्रकार यथायोग सुस्पष्ट कर लेना चाहिए।
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