________________
34]
सर्वार्थसिद्धौ
[118 § 76
देशोनाः । संयतासंयतर्लोकस्यासंख्येयभागः षट् चतुर्दशभागा वा देशोनाः । प्रमत्त संयतादीनामयोग केवल्यन्तानां क्षेत्रवत्स्पर्शनम् ।
$ 76 विशेषेण गत्यवादेन नरकगतौ प्रथमायां पृथिव्यां नारकंश्चतुर्गुणस्थानैर्लोकस्यासंख्येयभागः स्पृष्टः । द्वितीयादिषु प्राक्सप्तम्या मिथ्यादृष्टिसासादनसम्यग्दृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयare: एको द्वौ त्रयः चत्वारः पञ्च चतुर्दशभागा वा देशोनाः । सम्यङ् मिथ्य । दृष्टय संयतसम्यग्दृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः । सप्तम्यां पृथिव्यां मिथ्यादृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः षट् चतुर्दशभागा वा देशोनाः । शेबेस्त्रिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः । तिर्यग्गतौ तिरश्चां मिथ्यादृष्टिभिः सर्वलोकः स्पृष्टः । सासादनसम्यग्दृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः सप्त चतुर्दशभागा वा देशोनाः । सम्यङ्मिथ्यादृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः । असंयतसम्यदृष्टि' संयतासंयतैर्लोकस्य संख्येयभागः षट् चतुर्दशभाग वा देशोनाः । मनुष्यगतौ मनुष्य॑मिथ्या दृष्टिभिर्लोकस्य संख्येयभागः सर्वलोको वा स्पृष्टः । सासादनसम्यग्दृभिर्लोकस्यासंख्येयभागः सप्त चतुर्दशभागा वा देशोनाः । सम्यङ् मिथ्यावष्टचादीनामयोग केवल्यन्तानां क्षेत्रवत्स्पर्शनम् । देवगतौ देवैर्मिथ्यादृष्टि सासादन सम्य दृष्टिभि -
भागका स्पर्श किया है । तथा प्रमत्तसंयतोंसे लेकर अयोग केवली गुणस्थान तकके जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है ।
876. विशेषकी अपेक्षा गति मार्गणाके अनुवादसे नरक गतिमें पहली पृथिवीमें मिथ्यादृष्टि आदि चार गुणस्थानवाले नारकियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । दूसरीसे लेकर छठी पृथिवी तकके मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि नारकियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और क्रमसे लोक नाड़ीके चौदह भागों में से कुछ कम एक राजु, कुछ कम दो राजु, कुछ कम तीन राजु, कुछ कम चार राजु और कुछ कम पाँच राजु क्षेत्रका स्पर्श किया है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि नारकियोंने लोक के असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्श किया है। सातवीं पृथिवीमें मिथ्यादृष्टि नारकियोंने लोकके असंयातवें भाग क्षेत्रका और नालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह राजु क्षेत्रका स्पर्श किया है। सासादनसम्यग्दृष्टि आदि शेष तीन गुणस्थानवाले उक्त नारकियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । तिर्यंचगति में मिथ्यादृष्टि तिर्यंचोंने सब लोकका स्पर्श किया है। सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यंचोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाड़ीके चौदह भागों में से कुछ कम सात भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि तिर्यंत्रोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत तिर्यंचोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोक नाडीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। मनुष्यगतिमें
1. - दृष्टिभिः संयता - मु. ता. न. । 2. दृष्टिभिः सासा -- ता. । 3. ऊपर अच्युत कल्पतक छह राजु । इसमें से चित्रा पृथिवीका एक हजार योजन व आरण अच्युत कल्पके उपरिम विमानोंके ऊपरका भाग छोड़ देना चाहिए। यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा प्राप्त होता है। 4. मेरुपर्वतके मूलसे ऊपर सात राजु | यह स्पर्शन मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा प्राप्त होता है । यद्यपि तिर्यच सासादन सम्यग्दृष्टि जीव मेरुपर्वतके मूलसे नीचे भवनवासियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हुए पाये जाते हैं तथापि इतने मात्रसे
र्शन क्षेत्र सात राजुसे अधिक न होकर कम ही रहता है। ऐसे जीव मेरुपर्वतके मूलसे नीचे एकेन्द्रियोंमें व नारकियों में मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते यह उक्त कथनका तात्पर्य है। 5. ऊपर अच्युत कला तक छह राजु | इसमे से चित्रा पृथिवीका एक हजार योजन व आरण अच्युत कल्पके उपरिम विमानोंके ऊपरका भाग छोड़ देना चाहिए। यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा प्राप्त होता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org