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-1188103] प्रथमोऽध्यायः
145 न्तानां सामान्योक्तः कालः। अधक्षुर्दर्शनिषु मिय्यादृष्टयादिक्षीणकषायान्तानां सामान्योक्तः कालः । अवधिकेवलदर्शनिनोरवधिकेवलज्ञानिवत् ।
8103 लेश्यानुवादेन कृष्णनीलकापोतलेश्यासु मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया सर्वः कालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । उत्कर्षेण त्रयस्त्रिशत्सप्तदशसप्तसागरोपमाणि सातिरेकाणि । सासादनसम्यग्दृष्टिसम्यमिथ्यादृष्टयोः सामान्योक्तः कालः । असंयतसम्य दृष्ट नाजीवापेक्षया सर्वः कालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तमुहर्तः। उत्कर्षेण त्रस्त्रिशत्सप्तदशसप्तसागरोपमाणि देशोनानि । तेजःपद्मलेश्ययोमिथ्यादृष्टयसंयतसम्यग्दृष्टयो नाजीवापेक्षया सर्वः कालः। एकजीवं प्रति जयन्येनान्तर्मुहूर्तः। उत्कर्षेण द्वे सागरोपमे अष्टादश च सागरोपमाणि सातिरेकाणि । सासावनसम्यग्दृष्टिसम्यमिथ्यादृष्टयोः सामान्योक्तः कालः । संयतासंयतप्रमत्ताप्रमत्तानां नानाजीवापेक्षया सर्वः कालः । एकजीवं प्रति जघन्येनैकः समयः । उत्कर्वेणान्तर्मुहर्तः । शुक्ललेश्यानां मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया सर्वः कालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तमुहूर्तः। उत्कर्षेणैकत्रिंशत्सागरोपमाणि सातिरेकाणि । सासादनसम्यग्दृष्टयादिसयोगकेवल्यन्तानामलेश्यानां च सामान्योक्तः हजार सागरोपम है। तथा सासादन सम्यग्दष्टिसे लेकर क्षीणकषाय तक प्रत्येकका सामान्योक्त काल है । अचक्षुदर्शनवालोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय तक प्रत्येकका सामान्योक्त काल है। अवधिदर्शनवाले और केवलदर्शनवाले जीवोंका काल अवधिज्ञानी और केवलज्ञानियोंके समान है।
8103. लेश्या मार्गणाके अनुवादसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावालोंमें मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल क्रमशः साधिक तेतीस सागरोपम, साधिक सत्रह सागरोपम और साधिक सात सागरोपम है । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टिका सामान्योक्त काल है। असंयतसम्यग्दृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल क्रमशः कुछ कम तेतीस सागरोपम, कुछ कम सत्रह सागरोपम और कुछ कम सात सागरोपम है। पीत और पद्मलेश्यावालों में मिथ्यादष्टि और असंयतसम्यग्दष्टि का नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल क्रमशः साधिक दो सागरोपम और साधिक अठारह सागरोपम है। सासादनसम्यग्दष्टि और सम्यग्मिथ्याष्टिका सामान्योक्त काल है। संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । शुक्ल लेश्यावालोंमें मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागरोपम है । सासादन सम्यग्दृष्टिसे लेकर सयोगकेवली तक प्रत्येकका और लेश्यारहित जीवों
1. जो जिस लेश्यासे नरकमें उत्पन्न होता है उसके मरते समय अन्तर्मुहूर्त पहले वही लेश्या आ जाती है। इसी प्रकार नरकसे निकलनेपर भी अन्तर्मुहूर्त तक वही लेश्या रहती है। इसीसे यहाँ मिथ्यादृष्टिके कृष्ण, नील और कापोत लेश्याका उत्कृष्ट काल क्रमसे साधिक तेतीस सागरोपम,साधिक सत्रह सागरोपम और साधिक सात सागरोपम बतलाया है । 2. मिथ्यादृष्टिके पल्योपमका असंख्यातवां भाग अधिक दो सागरोपम या अन्तमुहूर्त कम ढाई सागरोपम और सम्यग्दृष्टिके अन्तमुहर्त कम ढाई सागरोपम । 3. मिथ्यादृष्टिके पल्योपमका असंख्यातवा भाग अधिक अठारह सागरोपम और सम्यग्दृष्टिके अन्तमुहूर्त कम साढ़े अठारह सागरोपम । 4. लेश्यापरावृत्ति और गुणपरावृत्तिसे जघन्य काल एक समय प्राप्त हो जाता है।
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