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-118 § 111]
प्रथमोऽध्यायः
जीवं प्रति जघन्येन पल्योपमासंख्येयभागोऽन्तर्मुहूर्तश्च । उत्कर्षेण एक-त्रि-सप्त-दश-सप्तदशद्वाविंशति त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाणि देशोनानि ।
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110 तिर्यग्गतौ तिरश्चां मिथ्यादृष्टेर्नानाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । एकजीवं प्रति जघन्ये नान्तर्मुहूर्तः । उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि देशोनानि । सासादनसम्यग्दृष्टद्यादीनां चतुर्णां सामान्योक्तमःतरम् ।
$ 111. मनुष्यगतौ मनुष्याणां मिथ्यादृष्टेस्तिर्यग्वत् । सासादनसम्यग्दृष्टिसम्यग्मिथ्यादृष्टयोर्नानाजीवापेक्षया सामान्यवत् । एकजीवं प्रति जघन्येन पल्योपमा संख्ये य भागोऽन्त महूर्तश्च । उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि पूर्व कोटीपृथक्त्वैरभ्यधिकानि । असंयतसम्यग्दृष्टेर्नानाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । एकजीवापेक्षया जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि पूर्वकोटीरोपम कुछ कम तीन सागरोपम, कुछ कम सात सागरोपम, कुछ कम दस सागरोपम, कुछ सत्रह सागरोपम, कुछ कम बाईस सागरोपम और कुछ कम तेतीस ' सागरोपम है ।
$ 110. तिर्यंचगतिमें तिर्यंचोंमें मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्योपम है । तथा सासादनसम्यग्दृष्टि आदि चारोंका सामान्योक्त अन्तर है ।
$ 111. मनुष्य गतिमें मनुष्योंमें मिथ्यादृष्टिका अन्तर निर्यंचोंके समान है । सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग और अन्तर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट अन्तरपूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है । असंयसतसम्यदृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर पूर्व कोटी पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है । संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतका नाना जीवोंकी
1. नरक में उत्कृष्ट स्थितिके साथ उत्पन्न होने पर अन्तर्मुहूर्त के बाद उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त कराके सासादन और मिश्रमें ले जाय। फिर मरते समय सासादन और मिश्रमें ले जाय । इस प्रकार प्रत्येक नरक में सासादन और मिश्र गुण-स्थानका उत्कृष्ट अन्तर आ जाता है। इतनी विशेषता है कि सातवें नरकमें मरनेके अन्तर्मुहूर्त पहले सासादन और मिश्र में ले जाय। 2. जो तीन पत्येकी आयुके साथ कुक्कुट और मर्कट आदि पर्यायमें दो माह रहा और वहाँसे निकलकर मुहूर्तं पृथक्त्वके भीतर वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । फिर अन्तमें मिथ्यात्व में जाकर और सम्यक्त्वको प्राप्त होकर मरकर देव हुआ । उसके मुहूर्त पृथक्त्व और दो माह कम तीन पल्य मिध्यात्वका उत्कृष्ट अन्तर होता है । 3. मनुष्य गतिमें मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अन्तर 10 माह 19 दिन और दो अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्य है । 4. मनुष्यकी उत्कृष्ट काय स्थिति संतालीस पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य है । कोई एक अन्य गतिका जीव सासादनके कालमें एक समय शेष रहने पर मनुष्य हुआ और अपनी उत्कृष्ट कार्यस्थिति प्रमाण काल तक मनुष्य पर्यायमें घूमता हुआ अन्तमें उपशम सम्यक्त्वपूर्वक एक समयके लिए सासादनको प्राप्त हुआ और मरकर देव हो गया तो इससे मनुष्य गतिमें सासादनका उत्कृष्ट अन्तर दो समय कम सैंतालीस पूर्व-कोटि और तीन पल्व प्राप्त हो जाता है । मिश्र गुणस्थानका उत्कृष्ट अन्तर लाते समय मनुष्य पर्याय प्राप्त करनेपर आठ वर्षके बाद मिश्र गुणस्थान प्राप्त करावे । फिर कायस्थितिके अन्त में मिश्र गुणस्थान प्राप्त कराकर मिथ्यात्व या सम्यक्त्वमें ले जाकर मरण करावे । तो इस प्रकार मिश्र गुणस्थानका उत्कृष्ट अन्तर तीन अन्तर्मुहूर्त और आठ वर्ष कम सैंतालीस पूर्वकोटि और तीन पल्य प्राप्त होता है। 5. मनुष्य सम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट अन्तर आठ वर्ष दो अन्तर्मुहूर्त कम संतालीस पूर्वकोटि और तीन पल्य है ।
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