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--1175 119] प्रथमोऽध्यायः
[53 प्रति नास्त्यन्तरम् ।
117. पुंवेदेषु मिथ्यादृष्टः सामान्यवत् । सासादनसम्यग्दृष्टिसम्यग्मिथ्यादृष्टयोनानाजीवापेक्षया सामान्यवत् । एकजीवं प्रति जघन्येन पल्योपमासंख्येयभागोऽन्तर्मुहूर्तश्च । उत्कर्षण सागरोपमशतपृथक्त्वम् । असंयतसम्यग्दृष्टयाद्यप्रमत्तान्तानां नानाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहर्तः । उत्कर्षेण सागरोपमशतपृथक्त्वम् । द्वयोरुपशमकयो नाजीवापेक्षया सामान्यवत् । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । उत्कर्षेण सागरोपमशतपृथक्त्वम् । द्वयोः क्षपकपोर्नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः। उत्कर्षेण संवत्सरः सातिरेकः । एकजीवं प्रति नास्त्यन्तरम्।
8118. नपुंसकवेदेषु मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहुर्तः । उत्कर्षेण त्रस्त्रिशत्सागरोपमाणि देशोनानि । सासादनसम्यग्दृष्टयाद्यनिवृत्त्युपशमकान्तानां सामान्योक्तम । द्वयोःक्षपकयोः स्त्रीवेदवत । अपगतवेदेष अनिवत्तिबादरोपशमकसक्षमसांपरायोपशमकयो नाजीवापेक्षया सामान्योक्तम् । एकजीवं प्रति जघन्यमुत्कृष्टं चान्तर्मुहूर्तः। उपशान्तकषायस्य नानाजीवापेक्षया सामान्यवत् । एकजीवं प्रति नास्त्यन्तरम् । शेषाणां सामान्यवत् ।
$ i19. कषायानुवादेन क्रोधमानमायालोभकषायाणां मिथ्यादृष्टयाद्यनिवृत्त्युपशमकाउत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व' है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है।
8117. पुरुषवेदियों में मिथ्यादृष्टिका अन्तर ओघके समान है। सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ओघके समान है। एक जीवको अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशःपल्योपमका असंख्यतवाँ भाग और अन्तमहर्त है तथा उत्कृष्टअन्तर सौ सागरोपम पृथक्त्व है। असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत तक प्रत्येक गुणस्थानका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर सौ मायरोपम पथक्त्व है। दोनों उपशमकोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ओघके समान है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागरोपम पथक्त्व है। दोनों अपकोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है।
118. नपुंसक वेदवालोंमें मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा, अन्तर नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागरोपम है। सासादनसम्यग्दष्टिसे लेकर अनिवृत्ति उपशमक तक प्रत्येक गुणस्थानका सामान्योक्त अन्तर है। तथा दोनों क्षपकोंका अन्तर स्त्रीवेदियोंके समान है। अपगतवेदवालोंमें अनिवृत्तिबादर उपशमक और सक्ष्मसाम्पराय उपशमकका नाना जीवोंकी अपेक्षा सामान्योक्त अन्तर है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तम हुर्त है। उपशान्तकषायका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ओघके समान है। एक जीवको अपेक्षा अन्तर नहीं हैं । शेष गुणस्थानोका अन्तर ओघके समान है।।
$ 119. कषाय मार्गणाके अनुवादसे क्रोध, मान, माया और लोभ में मिथ्यादृष्टिसे लेकर 1. साधारणतः क्षपकश्रेणिका उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है । पर स्त्रीवेदकी अपेक्षा उसका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व बतलाया है। 2. सासादनके दो समय कम और सम्यग्मिथ्यादृष्टिके छह अन्तर्मुहूर्त कम सौ सागरोपम पृथक्त्व यह अन्तर जानना चाहिए। आगे भी इस प्रकार यथा योग्य अन्तर घटित कर लेना चाहिए। 3. पुरुषवेदी अधिकसे अधिक साधिक एक वर्ष तक क्षपक श्रेणिपर नहीं चढ़ता यह इसका भाव है।
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