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सर्वार्थसिद्धौ
[1188 108 - सम्यग्मिध्यादृष्टेरन्तरं नानाजीवापेक्षया सासादनवत् । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहर्तः। उत्कर्षेणार्द्धपुद्गलपरिवर्तो देशोनः । असंयतसम्यग्दृष्टयाचप्रमत्तान्तानां नानाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । उत्कर्षेणार्द्धपुद्गलपरिवर्तो देशोनः । चतुर्णामुपशमकानां नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । उत्कर्षेण वर्षपृथक्त्वम् । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । उत्कर्षणार्द्धपुद्गलपरिवर्तो देशोनाः । चतुर्णा क्षपकाणामयोगकेवलिनां च नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । उत्कर्षेण षग्मासाः। एक नीवं प्रति नास्त्यन्तरम। सयोगकेवलिनां नानाजीवापेक्षया एकजीवापेक्षया च नास्त्यन्तरम् ।
६109. विशेषेण गत्यनुवादेन नरकगतौ नारकाणां सप्तसु पृथिवीषु मिथ्यादृष्टयसंयतसम्पादृष्ट यो नाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः। उत्कर्षेण एकत्रि सप्त-दश-सप्तदश-द्वाविंशति-त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाणि देशोनानि। सासादनसम्यग्दृष्टिसम्यमिथ्यादृष्ट योनानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । उत्कर्षेण पल्योपमासंख्येयभागः। एक
और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्ध पुद्गल परिवर्तन है। सम्यग्मिथ्यादष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर सासादनसम्यग्दृष्टियोंके समान है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन है । असंयत सम्यग्दष्टिसे लेकर अप्रगत्तसंयत तक प्रत्येकका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन है। चारों उपशमकोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तम हुर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन है। चारों क्षपक और अयोगकेवलियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है। सयोगकेवलियोंका नाना जीव और एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है।
8 109. विशेषकी अपेक्षा गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिमें नारकियोंमें सातों पृथिवियोंमें मिथ्यादष्टि और असंयतसम्यदष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्त और उत्कृष्ट अन्तर क्रमश: कुछ कम एक सागरोपम, कुछ कम तीन सागरोपम, कुछ कम सात सागरोपम, कुछ कम दस सागरोपम, कुछ कम सत्रह साग
सम, कूछ कम बाईस सागरोपम और कुछ कम तेतीस सागरोपम है। सासादनसम्यग्दष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग और अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर सातों नरकोंमें क्रमशः कुछ कम एक साग
1 सासादन गुणस्थान उपशम सम्यवत्वसे च्युत होने पर ही प्राप्त हो सकता है। किन्तु एक जीव कमसे कम पल्पके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल के जाने पर ही दूसरी बार उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त हो सकता है । इसीसे यहाँ सासादन सम्यग्दष्टि का जघन्यकाल अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण कहा है। 2. एक जीव उपशम श्रेणिसे च्युत होकर पुनः अन्तर्मुहूर्तसे बाद उपशम श्रेणिपर चढ़ सकता है इसलिए चारों उपशमकोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तम हुर्त बतलाया है। 3. जिस नरककी जितनी उत्कृष्ट स्थिति है उसके प्रारम्भ और अन्त में अन्तम हुर्त तक मिथ्यात्वके साथ रखकर मध्यमें सम्यक्त्वके साथ रखनेसे उस नरकमें मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अन्तर आ जाता है जिसका निर्देश मूल में किया ही है।
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