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441 सर्वार्थसिद्धौ
[118898पेक्षया सर्वः कालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । उत्कर्षेणानन्तः कालोऽसंख्येयाः पुद्गलपरिवर्ताः । सासादनसम्यग्दृष्ट याद्यनिवृत्तिबादरान्तानां सामान्यवत् । त्विसंयतसम्यग्दृष्ट नाजीवापेक्षया सर्वः कालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहर्तः। उत्कर्षेण त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाणि देशोनानि । अपगतवेदानां सामान्यवत् ।
899. कषायानुवादेन चतुष्कषायाणां मिथ्यादृष्टयाद्यप्रमत्तान्तानां मनोयोगिवत् । द्वयोरुपशमकयोर्द्वयोः क्षपकयोः केवललोभस्य च अकषायाणां च सामान्योक्तः कालः।
8100. ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञानिश्रुताज्ञानिष मिथ्यादष्टिसासादनसम्यग्दष्टयोः सामान्यवत् । विभङ्गज्ञानिषु मिच्यादृष्टे नाजीवापेक्षया सर्वः कालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः। उत्कर्षेण त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाणि देशोनानि । सासादनसम्यग्दृष्टः सामान्योक्तः कालः । आभिनिबोधिकश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलज्ञानिनां च सामान्योक्तः ।
$101. संयमानुवादेन सामायिकच्छेदोपस्थापनपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसांपराययथाख्यातशुद्धिसंयतानां संयतासंयतानामसंयतानां च चतुर्णां सामान्योक्तः कालः ।
$102. दर्शनानुवादेन चक्षुर्दर्शनिषु मिथ्यादृष्टेन नाजीवापेक्षया सर्वः कालः। एकजीवं प्रति जघन्यनान्तर्मुहर्तः । उत्कर्षेण द्वे सागरोपमसहस्र । सासादनसम्यग्दष्टयादीनां क्षीणकषायाका सामान्योक्त काल है । नपुसकवेदवालोंमें मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अनन्त काल है जिसका प्रमाण असंख्यात पुद्गल परिवर्तन है । तथा सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिबादर तक प्रत्येकका सामान्योक्त काल है। किन्तु असंयतसम्यग्दृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । तथा वेदरहित जीवोंका काल ओघके समान है।
899. कषाय मार्गणाके अनुवादसे मिथ्यादृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक चारों कषायों का काल मनोयोगियोंके समान है। तथा दोनों उपशमक, दोनों क्षपक, केवल लोभवाले और कषायरहित जीवोंका सामान्योक्त काल है।
$100. ज्ञान मार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानियोंमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टिका काल ओघके समान है। विभंगज्ञानियोंमें मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागरोपम है। तथा सासादनसम्यग्दष्टिका सामान्योक्त काल है। आभिनिबोधिकज्ञानी, भ्रतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानियोंका सामान्योक्त काल है।
$ 101. संयम मार्गणाके अनुवादसे सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, यथाख्यातशुद्धिसंयत, संयतासंयत और चारों असंयतोंका सामान्योक्त काल है।
$102. दर्शन मार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनवालोंमें मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल दो 1. यह सादि सान्त कालका निर्देश है। 2. सातवें नरक में असंयत सम्यग्दृष्टिका जो उत्कृष्ट काल है वही यहाँ नपुंसक वेदमें असंयत सम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट काल कहा है। 3. मिथ्यादृष्टि नारकी या देवके उत्पन्न होनेके बाद पर्याप्त होने पर ही विभंगज्ञान प्राप्त होता है। इसीसे यहाँ एक जीवकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टिके विभंगज्ञानका उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर कहा है।
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