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सर्वार्थसिद्धौ
[118 893श्चान्तर्मुहर्तः । असंयतसम्यग्दृष्टे नाजीवापेक्षया सर्वकालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहर्तः उत्कर्षेण त्रीणि पत्योपमानि सातिरेकाणि । शेषाणां सामान्योक्तः कालः।
894. देवगतौ देवेषु मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया सर्वकालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तमुहूर्तः। उत्कर्षेणैकत्रिंशत्सागरोपमाणि । सासादनसम्यग्दृष्टेः सम्यग्मिच्यादृष्टश्च सामान्योक्तः कालः । असंयतसम्यग्दष्टे नाजोवापेक्षया सर्वकालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तमुहूर्तः । उत्कर्षेण त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाणि ।
895. इन्द्रियानुवादेन एफेन्द्रियाणां नानाजीवापेक्षया सर्वकालः । एकजीवं प्रति जघन्येन क्षुद्रभवग्रहणम् । उत्कर्षेणानन्तः कालोऽसंख्येयाः पुद्गलपरिवर्ताः । विकलेन्द्रियाणां नानाजीवापेक्षया सर्वः कालः । एकजीवं प्रति जवन्येत क्षुद्रभवग्रहणम् । उत्कर्षेण संख्येयानि वर्षसहस्राणि । पञ्चेन्द्रियेषु मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया सर्वः कालः । एक जीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहर्तः । उत्कर्षण सागरोपमसहस्रं पूर्वकोटीपृयक्त्वैरभ्यधिकम् । शेषाणां सामान्योक्तः कालः ।
896. कायानुवादेन पृथिव्यप्तेजोवायुकायिकानां नानाजीवापेक्षया सर्वकालः । एकजीवं प्रति जयन्येन क्षुद्रभवग्रहणम् । उत्कर्षेण/संख्येया लोकाः । वनस्पतिकायिकानामे केन्द्रियवत् । त्रसकाविषेषु मिश्यादृष्टेननिाजीवापेक्षया सर्वः कालः । एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । उत्कर्षण द्वे सागरोपमसहस्रे पूर्वकोटीपृथक्त्वैरभ्यधिके । शेषाणां पञ्चेन्द्रियवत् ।
६ 97. योगानुवादेन वाङ्मनसयोगिषु मिथ्यादृष्टयसंयतसम्यग्दृष्टिसंयतासंयतप्रमत्तासंयत आदि शेषका काल ओघके समान है।
894. देवगतिमें देवोंमें मिथ्याष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल इकतीस सागरोपम है । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादष्टिका काल ओघके समान है। असंयत सम्यग्दष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल : है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है।
$ 95. इन्द्रिय मार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट अनन्त काल है जिसका प्रमाण असंख्यात पुद्गल परिवर्तन है। विकलेन्द्रियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षद्रभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। पंचेन्द्रियोंमें मिथ्यादृष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्वसे अधिक हजार सागरोपम है। तथा शेष गुणस्थानोंका काल ओषके समान है।
896. काय मार्गणाके अनुवादसे पथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायूकायिकोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षद्रभवग्रहण प्रमाण और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है। वनस्पतिकायिकोंका एकेन्द्रियोंके समान काल है। त्रसकायिकोंमें मिथ्याष्टिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटीपथक्त्व अधिक दो हजार सागरोपम है। इनके शेष गुणस्थानोंका काल पंचेन्द्रियोंके समान है।
$ 97. योग मार्गणाके अनुवादसे वचनयोगी और मनोयोगियोंमें मिथ्यादृष्टि, असंयत1. --ख्येयः कालः । वन-मु.। 2. लगातार दोइन्द्रिय तेइन्द्रिय या चौइन्द्रिय होनेका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है । इसलिए इनका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है।
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