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-118 § 79]
प्रथमोऽध्यायः
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र्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ नव चतुर्दशभागा वा देशोनाः । सम्यङ् मिथ्यादृष्टच संयतसम्यग्दृष्टिभिलोकस्य संख्येयभागः अष्टौ चतुर्दशभागा वा देशोनाः ।
877. इन्द्रियानुवादेन एकेन्द्रियैः सर्वलोकः स्पृष्टः । विकलेन्द्रियैर्लोकस्यासंख्येयभागः सर्वलोको वा । पञ्चेन्द्रियेषु मिथ्यादृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ चतुर्दशभागा वा देशोनाः सर्वलोको वा । शेषाणां सामान्योक्तं स्पर्शनम् ।
$ 78. कायानुवादेन स्थावरकायिकैः सर्वलोकः स्पृष्टः । त्रसकायिनां पञ्चेन्द्रियवत् स्पर्शनम्। मिथ्यादृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ 879. योगानुवादेन वाङ्मनसयोगिनां चतुर्दशभागा वा देशोनाः सर्वलोको वा । सासादनसम्य दृष्टचादीनां क्षीणकषायान्तानां सामान्योक्तं स्पर्शनम् । सयोगकेवलिनां लोकस्यासंख्येयभागः । काययोगिनां मिथ्यादृष्ट्यादीनां सयोगकेवल्यमिथ्यादृष्टि मनुष्योंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्श किया है । सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोक नाडीके चौदह भागों मेंसे कुछ कम सात भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यग्मिथ्यादृष्टिसे लेकर अयोगकेवली गुणस्थान तक मनुष्यों का स्पर्श क्षेत्रके समान है । देवगति में मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंने लोकके असंख्यावें भाग क्षेत्रका तथा लोकनाडीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
877. इन्द्रिय मार्गणा के अनुवादसे एकेन्द्रियोंने सब लोकका स्पर्श किया है। विकलेन्द्रियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्श किया है। पंचेन्द्रियों में मिथ्यादृष्टियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकना डीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्श किया है । शेष गुणस्थानवाले पञ्चेन्द्रियोंका स्पर्श ओघ के समान है ।
878. काय मार्गणा अनुवादसे स्थावरकायिक जीवोंने सब लोकका स्पर्श किया है । कायिकों का स्पर्श पञ्चेन्द्रियोंके समान है ।
$ 79. योग मार्गणा अनुवादसे मिथ्यादृष्टि वचनयोगी और मनोयोगी जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्श किया है । सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे लेकर क्षीणकषाय तकके गुणस्थानवालों1. मरणान्तिक समुद्घात और उपपादपदकी अपेक्षा यह स्पर्शन सर्वलोकप्रमाण कहा है। 2. भवनवासी लोकसे लेकर ऊपर लोकाग्र तक । इसमें से अगम्यप्रदेश छूट जानेसे कुछ कम सात राजु स्पर्श रह जाता है । यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा प्राप्त होता है । 3. मेरुतलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर छह राजु । यह स्पर्शन विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकपदकी अपेक्षा प्राप्त होता है। 4 मेरुतलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर सात राजु । यह स्पर्शन मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा प्राप्त होता है । 5. मेरुतलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर छह राजु । यह स्पर्शन विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है। 6. विकलेन्द्रियों का सब लोक स्पर्श मारणान्तिक और उपपाद पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है। 7. मेरुतलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर छह राजु । यह स्पर्शन विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वै क्रियिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है। 8 सब लोक स्पर्श मारणान्तिक और उपपादकी अपेक्षा प्राप्त होता है । 9. मेरुतलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर छह राजु । यह स्पर्शन विहारवत्स्वत्स्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है ।
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