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-118 § 85]
$ 81. कषायानुवादेन चतुष्कषायाणामकत्रायाणां च सामान्योक्तं स्पर्शनम् ।
$ 82. ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञानिश्रुताज्ञानिनां मिध्यादृष्टिसासावनसम्यग्दृष्टीनां सामान्योक्तं स्पर्शनम् । विभङ्गज्ञानिनां मिथ्यादृष्टीनां लोकस्थासंख्येयभागः अष्टौ चतुवंशभागा झ देशोनाः सर्वलोकी वा । सासादनसम्यग्दृष्टीनां सामान्योक्तं स्पर्शनम् । आभिनिबोधिकाधि मन:पर्यय केवलज्ञानिनां सामान्योक्तं स्पर्शनम् ।
प्रथमोऽध्यायः
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$ 83. संयमानुवादेन संयतानां सर्वेषां संयतासंयतानामसंयतानां च सामान्योक्तं स्पर्शनम् । 684 दर्शनानुवादेन चक्षुर्दर्शनिनां मिध्यादृष्ट्यादिक्षीणकषायान्तानां पञ्चेन्द्रियवत् । अचक्षुर्दर्शनिनां मिथ्यादृष्ट्यादिक्षीणकषायान्तानामघिकेवल दर्शनिनां च सामान्योक्तं स्पर्शनम् ।
8 85. लेश्यानुवादेन कृष्णनीलकापोतले श्यैमिथ्यादृष्टिभिः सर्वलोकः स्पृष्टः । सासावनसम्यग्दृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः पञ्च चत्वारो द्वौ चतुर्दशभागा वा' देशोनाः । सम्यमिय्यादृष्टय संवतराम्य दृष्टिभिर्लोकस्थासंख्येयभागः । तेजोलेश्य मय्यादृष्टिसासादन सम्यग्दृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ नथ चतुर्दशभागा वा देशोनाः । सम्यङ् मिथ्यादृष्टय संयत सम्यग्दृष्टिभिला
$ 81. कषाय मार्गणाके अनुवादसे क्रोधादि चारों कषायवाले और कषायरहित जीवोंका स्पर्श ओधके समान है ।
$ 82 ज्ञान मार्गणा अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी मिथ्यादृष्टि और सासा - दनसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्श ओघ के समान है । विभंगज्ञानियोंमें मिथ्यादृष्टियों का स्पर्श लोकका असंख्यातवाँ भाग, लोकनाडीके समान चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भाग और सर्व लोक" है ! सासादनसम्यदृष्टियोंका स्पर्श ओघके समान है । आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी जीवोंका स्पर्श ओघके समान है ।
883. संयम मार्गणाके अनुवादसे सब संयतोंका, संयतासंयतोंका और असंयतोंका स्पर्श ओघ के समान है ।
8 81. दर्शन मार्गणा के अनुवादसे मिथ्यादृष्टियोंसे लेकर क्षीणकषाय तकके चक्षुदर्शन वाले जीवोंका स्पर्श पंचेन्द्रियोंके समान है । मिथ्यादृष्टियोंसे लेकर क्षीणकषाय तकके अचक्षुदर्शनवाले जीवोंका तथा अवधिदर्शनवाले और केवलदर्शनवाले जीवोंका स्पर्श ओघ के समान है ।
885. लेश्या मार्गणा अनुवादसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले मिथ्यादृष्टियोंने सब लोकका स्पर्श किया है । सासादनसम्यग्दष्टियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागों में से क्रमश: कुछ कम पाँच भाग, कुछ कम चार भाग और कुछ कम दो भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । पीतलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने
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1 वा देशोनाः । द्वाद्वशभागाः कुतो न लभ्यन्ते इति चेत् तत्रावस्थितलेश्यापेक्षया पञ्चैव । अथवा येषां मते सासादन एकेन्द्रियेषु नोत्पद्यते तन्मतापेक्षया द्वाद्वशभागा न दत्ताः । सम्यङ्गिय्या - मु., आ., दि. 112. यह स्पर्श विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है, क्योंकि नीचे दो राजु और ऊपर छह राजु क्षेत्रमें गमनागमन देखा जाता है। 3. यह स्पर्शन मारणान्तिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है । क्योंकि ये जीव सब लोकमें मारणान्तिक समुद्घात करते हुए पाये जाते हैं । 4. यह स्पर्श मारणान्तिक और उपपाद पदकी अपेक्षा बतलाया है। कृष्ण लेश्यावालेके कुछ कम पाँच राजु, नील लेश्यावाले कुछ कम चार यजु और कापोत लेश्यावालेके कुछ कम दो राजु यह स्पर्श होता है। जो नारकी ति व सासादन सम्यग्दृष्टियोंमें उत्पन्न होते हैं उन्हींके यह स्पर्श सम्भव है ।
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