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सर्वार्थसिद्धौ
[118882... स्थासंख्येयभागः अष्टौ चतुर्दशंभागा वा देशोनाः । संयतासंयतैलॊकस्यासंख्येयभागः अध्यर्धचतुर्दशभागा वा देशोनाः। प्रमत्ताप्रमतर्लोकस्यासंख्येयभागः । पद्मलेश्यैमिथ्यादृष्टयाद्यसंयतसम्यग् - बष्ट यन्तर्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ चतुर्दशभागा वा देशोनाः। संयतासंयतर्लोकस्यासंख्येयभाग: पञ्च चतर्दशभागा वा देशोनाः । प्रमत्ताप्रमतर्लोकस्यासंख्येयभागः । शुक्ललेश्यैमिथ्यादष्टयादिसंयतासंयतान्तैर्लोकस्यासंख्येयभागः षट् चतुर्दशभागा वा देशोनाः । प्रमत्तादिसयोगकेवल्यन्तानां अलेश्यानां च सामान्योक्तं स्पर्शनम्। लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा लोकनाडीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टियोंने लोको असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा लोकनाडीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पी किया है। संयतासंयतोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागाम-में कुछ कम डेढ़ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवोंने लोको - ख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । मिथ्यादृष्टियोंसे लेकर असंयतसम्यग्दृटियों तक के पद्मलेश्यावाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । संयतासंयतोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागोंमें से कुछ कम पाँच भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। मिथ्यादृप्टियोंसे लेकर संयतासंयतों तकके शक्ललेश्यावाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागोंमें से कुछ कम छह' भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। प्रमत्तसंयत आदि सयोगकेवली तकके शुक्ललेश्यावालोंका और लेश्यारहित जीवोंका स्पर्श ओघके समान है। 1. यह स्पर्शन विहार, वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदको अपेक्षा प्राप्त होता है, क्योंकि पीतलेश्यावाले सासादनोंका नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर छह राजु क्षेत्रमें गमनागमन देखा जाता है। 2. यह स्पर्श मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा प्राप्त होता है क्योंकि ऐसे जीव तीसरी पृथिवीसे ऊपर कुछ कम नौ राजु क्षेत्र में मारणान्तिक समुद्धात करते हुए पाये जाते हैं। उपपाद पदकी अपेक्षा इनका स्पर्श कुछ कम डेढ़ राजु होता है इतना यहाँ विशेष जानना चाहिए। 3. यह स्पर्श विहार, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है। युक्तिका निर्देश पहले किया ही है। इतनी विशेषता है कि मिश्र गुणस्थानमें मारणान्तिक समुघात नहीं होता। 4. यह स्पर्श मारणान्तिक पदको अपेक्षा प्राप्त होता है। इनके उपपाद पद नहीं होता। 5. यह स्पर्श विहार, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है। इनके उपपाद पदकी अपेक्षा स्पर्श कुछ कम पाँच राजु होता है। इतनी विशेषता है कि मिश्र गुणस्थानमें मारणान्तिक और उपपाद पद नहीं होता। 6. यह स्पर्श मारणान्तिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है, क्योंकि पद्म लेश्यावाले संयतासंयत ऊपर कुछ कम पाँच राजु क्षेत्रमें मारणान्तिक समुद्घात करते हुए पाये जाते हैं। 7. बिहार, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पदोंकी अपेक्षा यह स्पर्शन प्राप्त होता है । सो भी मिथ्यादृष्टि आदि चार गुणस्थानोंकी अपेक्षा यह कथन किया है। संयतासंयत शुक्ल लेश्यावालोंके तो विहार, वेदना, कषाय और वंऋियिक पदोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण ही स्पर्शन प्राप्त होता है। उपपादकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि शुक्ल लेश्यावालोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अविरतसम्यग्दृष्टि शुक्ल लेश्यावालोंका स्पर्श कुछ कम छह राजु है। संयतासंयतोंके उपपादपद नहीं होता। फिर भी इनके मारगान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा कुछ कम छह राजु स्पर्श बन जाता है।
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