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--118890 प्रथमोऽध्यायः
[39 886. व्यानुवादेन भव्यानां पथ्यादृष्टयागयोगकेवल्यन्तानां सामान्योक्तं स्पर्शनम् । अभव्यैः सतलोकः स्पष्ट ।
8 87. सम्यक्त्वानुवादेन क्षायिकसम्गादृष्टीनामसंयतसम्यादृष्टयाद्ययोगकेवत्यन्तानां सामान्योरतम । कित संयतासंयतानां लोकस्यासंख्येषभागः । क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टीनां सामान्योक्तम् । शनिक सम्यक्त्वानामसंयतसम्यग्दृष्टीनां सामान्योक्तम् । शेषार्णा लोकस्यासंख्येयभागः । सासादनसम्यग्दृटिस मध्याटिमियादृष्टीनां मामान्योक्तम् ।
88. संज्ञानुवादेन संश्निां चक्षुदर्शनिवत असंदिभिः सर्वलोक: स्पृष्टः। तदुभयव्यपदेशरहिताना सामान्योक्तम् ।
689. आहारानवालेन अहारका मियादाट धादिक्षीणकर यान्तानां सामान्योक्तम । सयोगकेजिना लोकस्यान्येय : । अाहार व मिथ्यादृष्टिभि. सर्वलोकः स्पृष्टः । सासादनसम्यादष्टि लोका-यासंख्येयभार एक दक्षा चशभावा देशोना। असंयंतसभ्यष्टिभिः लोकस्यानस्येपनासः परतर्दश भार वा देशोनाः । संयोगकेवलिना लोकस्योसंख्येयभागाः सर्वलोको वा । अयोगकेवलिनां लोकस्यासंख्येय ग.: स्पर्श नं व्यायाम ।
$90. कालः प्रस्तूयते । सविध.- सामान्येन विशेषेण च । सामान्येन ताद मिथ्यादष्टे नाजीवापेक्षया सर्वकालः । एकजीवापेक्षया त्रयो भङ्गाः। नादिरपर्यवसान अनादिः सर्यव
886. भव्य मार्गणाके अनुदादसे पिथ्यान्टियोंसे लकर अयोगकेवली तकके भव्योंका स्पर्श ओघके समान है। अभव्योंने सब लाकका स्पर्श किया है।
887. सम्यक्त्व मार्गणाके अनुवादसे असंयतसम्यग्दष्टियोंसे लेकर अयोगकेवली तकके क्षापिकसम्यग्दष्टियोंका स्परी ओघके समान है। किन्तु संयतासंयतोंका स्पर्श लोकका असंख्यातवाँ भाग है। क्षायोपशमिक सम्यग्दष्टियोंका स्पर्श ओघके समान है। असंयतसम्यग्दष्टि औपशामिक सम्यग्दष्टियो का स्पर्श ओघके समान है। तथा शष ओपशामक सम्यग्दष्टियोंका स्पर्श लोकका असंख्यातवाँ भाग है । सासादनसम्यग्दृष्टि, सरगग्मिथ्यादृष्टि और मिथ्यादृष्टियोंका सामान्योक्त स्पर्श है।
888. संज्ञा मार्गणाके अनुवादसे संज्ञियोंका स्पर्श चक्षुदर्शनवाले जीवोंके समान है । असंजियों ने सब लोगका स्पर्श किया है। इन दोनों व्यवहारोंसे रहित जीवोंका स्पर्श ओघके सामन है।
889. आहार मार्गणाके अनुवादसे मिथ्यादृष्टियोंसे लेकर क्षीणकषाय तकके आहारकोंका स्पर्श ओघके सामान है । तथा सयोगकेवलियोंका स्पर्श लोकका असंख्यातवाँ भाग है। अनाहारकोंमें मिथ्यादृष्टियोंने सब लोकका स्पर्श किया है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागोंमें-से कुछ कम ग्यारह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । असंयतसम्यग्दृष्टियोंने लोकके असंख्यात भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागोमेंसे कछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। सयोगकेवलियोंने लोकके असंख्यात बहभाग क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्श किया है। तथा अयोगकेवलियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। इस प्रकार स्पर्शनका व्याख्यान किया।
890. अब कालका कथन करते हैं । सामान्य और विशेषकी अपेक्षा वह दो प्रकारका है। सामान्यकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टिका माना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है अर्थात् मिथ्यादृष्टि 1. मेरु तलसे नीचे कुछ कम पाँच राजु और ऊपर छह राजु । यह स्पर्श उपपाद पदकी अपेक्षा प्राप्द होता है। 2. अच्युत कल्प तक ऊपर कुछ कम राजु । तिर्यंच असंयत सम्यग्दृष्टि जीव मर कर अच्युत कल्प तक उत्पन्न होते हैं इसलिए उपपाद पदकी अपेक्षा यह स्पर्श बन जाता है।
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