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सर्वार्थसिद्धौ
[118880न्तानामयोगकेवलिनां च सामान्योक्तं स्पर्शनम् ।
80. वेदानुवादेन 'स्त्रीपुंवेदैमिथ्यादृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः स्पृष्टः अष्टौ चतुर्दशभागा वा देशोनाः सर्वलोको वा । सासादनसम्यग्दृष्टिभिः लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ नव चतुदशभागा वा देशोनाः । सम्यमिय्यादृष्टयाद्यनिवृत्तिबादरान्तानां सामान्योक्तं स्पर्शनम् । नपुंसकवेदेषु मिथ्यादृष्टीनां सासादनसम्यग्दृष्टीनां च सामान्योक्तं स्पर्शनम् । 'सम्पमिथ्यादृष्टिभिर्लोकस्यासंख्येयभागः। असंयतसम्यादृष्टिसंयतासंयतर्लोकस्यासंख्येयभागः षट् चतुर्दशभागा वा देशोनाः । प्रमत्ताद्यनिवृत्तिबादरान्तानामपगतवेदानां च सामान्योक्तं स्पर्शनम् । का स्पर्श ओघके समान है। सयोगकेवली जीवोंका स्पर्श लोकका असंख्यातवाँ भाग है। तथा मिथ्यादष्टिसे लेकर सयोगकेवली गुणस्थान तक काययोगवालोंका और अयोगकेवली जीवोंका स्पर्श ओघके समान है।
6 80. वेद मार्गणाके अनुवादसे मिथ्यादृष्टि स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा लोक नाडीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है । सासादन सम्यग्दृष्टियोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा लोकनाडीके चौदह भागोंमें से कुछ कम 'आठ भाग और कुछ कम नौ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। सम्यग्मिथ्यादष्टियोंसे लेकर
दर गुणस्थान तकके जीवोंका स्पर्श ओघके समान है । नपुसकवेदियोंमें मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टियोंका स्पर्श ओघके समान है। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंने लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्श किया है। असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयतोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकनाडीके चौदह भागोंमें से कुछ कम 10छह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा प्रमत्तसंयतोंसे लेकर अनिवृत्ति बादर गुणस्थान तकके जीवोंका स्पर्श ओघके समान है।
1. स्त्रीपुंसवे-ता । 2. अष्टौ नव चतु-मु.। 3. लोको वा । नपुंसकवेदेषु मु.। 4. सम्यमिथ्यादृष्टिभिलॊकस्यासंख्येभागः स्पृष्टः। सासादनसम्यग्दृष्टिभिः लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ नव चतुर्दश भागा वा देशोनाः । सम्यग्मिथ्यादृष्टयाद्य निवृत्तिबादरान्तानां सामान्योक्तं स्पर्शनम् । असंयतसम्य-मु.। 5. समुद्घातके कालमें मनोयोग और वचनयोग नहीं होता, इससे वचनयोगी और मनोयोगी सयोगी केवलियों का स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण बतलाया है। 6. मेरुतलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर छह राजु । यह स्पर्शन विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है। सब लोक स्पर्श मारणान्तिक और उपपादकी पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है। 7. मेरुतलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर छह राजु । यह स्पर्शन विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है। 8. मेरुतलसे नीचे कुछ कम दो राजु और ऊपर सात राजु । यह स्पर्शन मारणान्तिक पदकी अपेक्षा प्राप्त । होता है । यहाँ उपपाद पदकी अपेक्षा ग्यारह घनराजु स्पर्शन प्राप्त होता है। किन्तु उपपादपदकी विवक्षा नहीं होनेसे उसका उल्लेख नहीं किया है। यह स्पर्शन मेरुतलसे नीचे कुछ कम पाँच राजु और उपर छह राजु इस प्रकार प्राप्त होता है। 9..यहाँ नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शन ओषके समान बतलाया है । सो यह सामान्य निर्देश है। विशेषकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि नसकवेदियोंने वैक्रियिक पदकी अपेक्षा पाँच धनराजु क्षेत्रका स्पर्श किया है, क्योंकि वायुकायिक जीव इतने क्षेत्रमें विक्रिया करते हुए पाये जाते हैं। नपुंसकवेदी सासादन सम्यग्दृष्टियोंने स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैऋियिकपदकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्शनकिया है। उपपादपदकी अपेक्षा । कुछ कम ग्यारह बटे चौदह भाग त्रसनालीका स्पर्श किया है। मारणान्तिक पदकी अपेक्षा कुछ कम बारह बटे चौदह भाग त्रसनालीका स्पर्श किया है। शेष कथन ओघके समान है। 10. यह स्पर्श मारणान्तिक पदकी अपेक्षा प्राप्त होता है।
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