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32] सर्वार्थसिद्धी
[118872672. सम्यक्त्वानुवादेन क्षायिकसम्यादष्टीनामसंयतसम्यग्दष्टयाद्ययोगकेवल्यन्तानां सायोपशमिकसम्यग्दृष्टीनामनरलसम्य दृष्ट याद्यप्रमनान्तानासौपशमिकसम्यग्दृष्टीनामसंयतसम्यग्दष्टयाधुपशान्तकपायाला पापादनसम्मन्दष्टीनां सावमिथ्यादृष्टीनां मिथ्यादष्टीनां च सामान्योक्तं क्षेत्रम् ।
$73. सज्ञानुवादेन सजिना चक्षुर्दर्शनिवत् । असजिनां सर्वलोकः । तदुभयव्यपदेशरहितानां सामान्योक्तं क्षेत्रम्।
74. आहारानुवादेन आहारकाणां मिथ्यादृष्टयादिक्षीणकषायान्तानां सामान्योक्तं क्षेत्रम । सयोगकेवलिना लोकस्यासंख्येयभागः : अनाहारकाणां मिथ्यादष्टिसासादनसम्रा दृष्टयसयतसम्यग्दष्ट योगकेवलिना सामान्योक्तं क्षेत्रम् । सयोगकेवलिनां लोकस्यासंख्येया' भागाः सर्वलोको वा। क्षेत्रनिर्णयः कृतः ।
872. सम्यक्त्व मागणाके अनवादसे असंयत सम्यग्दप्टिसे लेकर अयोगकेवली तक प्रत्येक गुणस्थानवाले क्षायिकसम्यग्दष्टियोंका, असंयतसम्यग्दष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक प्रत्येक गुणस्थानवाले क्षायोपशमिक सम्यग्दष्टियोंका, असंयतसम्यग्दष्टि से लेकर उपशान्तकषाय गणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवाले औपशमिक सम्यग्दृष्टियोंका तथा सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और मिथ्यादृष्टियों का सामान्योक्त क्षेत्र है।
873. संज्ञा मार्गणाके अनुवादसे संशियोंका चक्षदर्शनवाले जीवोंके समान, असंज्ञियोंका सब लोक और संनी असंज्ञी इस संज्ञासे रहित जीवोंका सामान्योक्त क्षेत्र है।
. आहार मार्ग गाके अनुवादसे मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय तक प्रत्येक गुणस्थानवाले आहारका सामान्योक्त क्षेत्र है। सयोगकेवलियों का लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है। मिथ्यादृष्टि, सामानसम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और अयोगकेवली अनाहारक जीवोंका सामान्योक्त क्षेत्र है। तथा सयोगकेवली अनाहारकोंका लोकका असंख्यात बहुभाग और सब लोक क्षेत्र है।
विशेषार्थ -क्षेत्रप्ररूपणामें केवल वर्तमान कालीन आवासका विचार किया जाता है। मिथ्यादष्टि जीव सब लोक में पाये जाते हैं इसलिए उसका सब लोक क्षेत्र पर लाया है। अन्य गणस्थानवाले जीव केवल लोकके अगत्यातव भागप्रमाण क्षेत्र में ही पाये जाते हैं इसलिए इनका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र बतलाया है। केवल सयोगिकेवली इसके अपवाद हैं। यों तो स्वस्थानगत सयोगिकेवलियोंका क्षेत्र भी लोकके असंख्यातवे भाग प्रमाण ही है फिर भी जो सयोगिकेवली समुद्घात करते हैं उनका क्षेत्र तीन प्रकारका प्राप्त होता है। दण्ड और कपाटरूप समुदघातके समय लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, प्रतररूप समुदघातके समय लोकका असंख्यात बहभाग और लोकपूरक समुद्घातके समय सब लोक क्षेत्र प्राप्त होता है इसलिए इनके , क्षेत्रका निर्देश तीन प्रकारसे किया गया है। गति आदि मार्गणाओंके क्षेत्रका विचार करते समय इसी दष्टिको सामने रखकर विचार करना चाहिए। साधारणतया कहाँ दितना क्षेत्र है इसका विवेक इन बातोंसे किया जा सकता है-1. मिथ्यादष्टियोंमें एकेन्द्रियोंका ही सब लोक क्षेत्र प्राप्त होता है। शेषका नहीं। इनके कुछ ऐसे अवान्तर भेद हैं जिनका सब लोक क्षेत्र नहीं प्राप्त होता पर वे यहाँ विवक्षित नहीं। इस हिसाबसे जो-जो मार्गणा एकेन्द्रियोंके सम्भव हो उन सबके सब लोक क्षेत्र जानना चाहिए। उदाहरणार्थ-गति मार्गणामें तिर्यंचगति 'मार्गपा, इन्द्रिय मार्गणा में एकेन्द्रिय मार्गणा, काय-पागणामें पृथिवी आदि पाँच स्थावर काय मागणा, योग 1. -स्यासंख्येयमाग: मु., दि. 1, दि. 21
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