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–118 § 71]
प्रथमोऽध्यायः
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867. ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञानिश्रुताज्ञानिनां मिथ्यादृष्टि सासादन सम्यग्दृष्टीनां सामान्योक्तं, क्षेत्रम् । विभङ्गज्ञानिनां मिथ्यादृष्टिसासादनसम्यग्दृष्टीनां लोकस्य संख्येयभागः । आभिनिबोधिकः वधिज्ञानिनामसंयत सम्यग्दृष्ट्यादीनां क्षीणकषायान्तानां मन:पर्ययज्ञानिनां च प्रमत्तादीनां क्षीणकषायान्तानां केवलज्ञानिनां सयोगानामयोगानां च सामान्योक्तं क्षेत्रम् ।
868. संयमानुवादेन सामायिकच्छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतानां चतुर्णां परिहारविशुद्धिसंयतानां प्रमत्ताप्रमत्तानां सूक्ष्मसांप रायशुद्धिसंयतानां यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतानां चतुर्णां संयतासंयतानामसंयतानां च चतुर्णां सामान्योक्तं क्षेत्रम् ।
$ 69. दर्शनानुवादेन चक्षुर्दर्शनिनां मिथ्यादृष्ट्यादिक्षीणकषायान्तानां लोकस्यासंख्येयभागः । अचक्षुर्दर्शनिनां मिथ्यादृष्टयादिक्षीणकषायान्तानां सामान्योक्तं क्षेत्रम् । अवधिदर्शनिनामवधिज्ञानिवत् । केवलदर्श निनां केवलज्ञानिवत् ।
870. लेश्यानुवादेन कृष्णनीलकापोतलेश्यानां मिथ्यादृष्टबाद्यसंयतसम्यग्दृष्टयन्तानां सामान्योक्तं क्षेत्रम् । तेजःपद्मलेश्यानां मिथ्यादृष्ट याद्यप्रमत्तान्तानां लोकस्यासंख्येयभागः । शुक्ललेश्यानां मिथ्यादृष्टचादिक्षीणकषायान्तानां लोकस्यासंख्येयभागः । सयोगकेवलिनामलेश्यानां च सामान्योक्तं क्षेत्रम् ।
8 71. भव्यानुवादेन भव्यानां चतुर्दशानां सामान्योक्त क्षेत्रम् | अभव्यानां सर्वलोकः ।
867 ज्ञानमार्गणा अनुवादसे मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवाले त्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंका सामान्योक्त क्षेत्र है । मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि विभंगज्ञानियों का लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है । असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकत क्षीणकषाय तक प्रत्येक गुणस्थानवाले आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंका, प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणकषाय तक प्रत्येक गुणस्थानवाले मन:पर्ययज्ञानी जीवोंका तथा सयोग और अयोग गुणस्थानवाले केवलज्ञानी जीवोंका सामान्योक्त क्षेत्र है ।
868 संयम मार्गणा अनुवादसे प्रमत्तादि चार गुणस्थानवाले सामायिक और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंका, प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानवाले परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंका, सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंका, उपशान्त मोह आदि चार गुणस्थानवाले यथाख्यात विहारविशुद्धिसंयत जीवोंका और संयतासंयत तथा चार गुणरथानवाले असंयत जीवोंका सामान्योक्त क्षेत्र है ।
869 दर्शन मार्गणा अनुवादसे मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय तक प्रत्येक गुणस्थान में चक्षुदर्शनवाले जीवोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है । मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय तक प्रत्येक गुणस्थानवाले अचक्षुदर्शनवाले जीवोंका सामान्योक्त क्षेत्र है । तथा अवधिदर्शनवालोंका अवधिज्ञानियों के समान और केवलदर्शनवालोंका केवलज्ञानियों के समान क्षेत्र है ।
870. लेश्या मार्गणा के अनुवादसे मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक प्रत्येक गुणस्थानवाले कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंका सामान्योक्त क्षेत्र है । मिथ्यादृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक प्रत्येक गुणस्थानवाले पीत और पद्मलेश्यावाले जीवोंके लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है । मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय तक प्रत्येक गुणस्थानवाले शुक्ललेश्यावाले जीवोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र है तथा शुक्ललेश्यावाले सयोगकेवलियों का और लेश्या रहित जीवोंका सामान्योक्त क्षेत्र है ।
71. भव्य मार्गणा अनुवादसे चौदह गुणस्थानवाले भव्य जीवोंका सामान्योक्त क्षेत्र हैं | अभव्योंका सब लोक क्षेत्र है ।
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