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-- 118860] प्रथमोऽध्यायः
[29 857. सम्यक्रमानुबादेन क्षायिकसम्यग्दृष्टिषु असंयतसम्यग्दृष्टयः पल्योपमासंख्येयभागप्रमिताः । संयतासंबतादय उपशान्तकायान्ताः संख्येयाः । चत्वारः क्षपकाः सयोगकेवलिनोयोगकेवलिनश्च सामान्योक्तसख्याः । क्षायोपशमिकसम्बदष्टिषु असंयतसभ्यग्वष्ट्यादयोऽप्रमत्तान्ता सामान्योक्तसंख्याः । औपशमिकसम्यग्दृष्टिबु असंयतराम्यग्दृष्टि संयतासंयताः पल्योपमासंख्येयभागप्रमिताः । प्रमत्ताप्रमत्तसंयताः संख्येयाः। चत्वार औपशमिकाः सामान्योक्तसंख्याः । सासादनसम्यादृष्टयः सम्यमिथ्यादृष्टयो मिथ्यादृष्टयश्च सामान्योक्त संख्याः ।
58. संशानुवादेन सजिषु मिथ्यादृष्ट्यादयः क्षीणकषायान्ताश्नार्दर्शनिवत् । असंजिनो मिथ्यादृष्टयोऽनन्तानन्ताः । तदुभयव्यपदेशरहिताः सामान्योक्त संख्याः ।
$59. आहारानुवादेन आहारकेषु मिथ्यादृष्ट्यादयः सयोगकेवल्याता: सामान्योस्त संख्याः । अनाहारकेष मिथ्यादृष्टिसासादनसम्यग्दृष्ट्यसंपतसम्यादृष्टयः सामान्योक्तसंख्याः। सयोगकेवलिन संख्येयाः । अयोगकेवलिनः सामान्योक्तसंख्याः । संल्या निर्णीता।
60. क्षेत्रमुच्यते । तद् द्विविध सामान्येन विशेषेण च । सामान्येन तावद् --मिश्यादृष्टीनां सर्वलोकः । सासादनसम्यग्दृष्ट्यादीनामयोगकेवल्यन्तानां लोकस्यासंख्यभागः । सबोगफेयलिना लोकस्यासंख्येयभागो'sसंख्यया भागाः सर्वलोको वा ।
857. सम्यक्त्व मार्गणाके अनुवादसे क्षायिक सम्वन्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि जीव पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं। संतासंयतसे लेकर उपशान्तकषाय तक जीव संख्यात हैं। चारों क्षपक, सपोगकेवली और अयोगकेवली सामान्यवत हैं। क्षायोपशामिक सम्यग्दष्टियों में असंयत सम्यग्दृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक सामान्यवत् हैं । औपशामिक सम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यादष्टि और संयतासंयत जीव पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं। प्रमत्त और अप्रमत्तसंयत जीव संख्यात हैं। चारों उपशमक सामान्यवत् हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीवोंकी संख्या सामान्यवत् है।
858. संज्ञा मार्गणाके अनुवादसे संज्ञियों में मिथ्यादृष्टि से लेकर क्षीणकषाय तक जीवोंकी संख्या चक्षुदर्शनवाले जीवोंके समान है। असंज्ञी मिथ्यादृष्टि अनन्तानन्त हैं। संज्ञी और असंजी संज्ञासे रहित जीवोंकी संख्या सामान्यवत् है।
859. आहार मार्गणाके अनुवादसे आहारकोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगफेवली तक जीवोंकी संख्या सामान्यवत् है । अनाहारकोंमें भिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंकी संख्या सामान्यवत् है । सयोगकेवली संख्यात हैं और अयोगकेवली जोवोंकी संख्या सामान्यवत् है । इस प्रकार संख्याका निर्णय किया।
860. अब क्षेत्रका कथन करते हैं। सामान्य और विशेषकी अपेक्षा वह दो प्रकार का है। सामान्यसे मिथ्यादष्टियोंका सब लोक क्षेत्र है। सासादनसम्यग्दष्टियोंसे लेकर अयोगकेवली तक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। सयोगकेवलियोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण, लोकके असंख्यात बहुभागप्रमाण और सब लोक क्षेत्र है।
1. ---भाग: । समुद्घातेसंख्येया वा मागा: सर्व-मु. न.। 2. मिथ्यादृष्टि संजी असंख्यात जगश्रेणिप्रमाण हैं। सासादन आदि संजियोंकी संख्या जिस गुणस्थानवालोंकी जितनी संख्या है उतनी है। ३. संख्यात। 4. मिध्यादृष्टि आहारक अनन्तानन्त हैं। सासादनसे लेकर संयतासंयत तकके बाहारक पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । शेष संख्यात हैं। 5. मिथ्यादष्टि अनाहारक अनन्तानन्त हैं। तथा सासादन सम्यग्दृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि अनाहारक पल्यके असंख्यातवें भाग हैं। 6. संख्यात।
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