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सर्वार्थसिद्धौ
[118853853. संयमानुवादेन सामायिकच्छेदोपस्थापनशुद्धिसंयताः प्रमत्तादयोऽनिवृत्तिबादरास्ताः सामान्योक्तसंख्याः। परिहारविशुद्धिसंयताः प्रमत्ताश्चाप्रमत्तादच संख्येयाः। सूक्ष्मसापरायशुद्धिसंयता यथाख्यातविहारशुद्धिसंयताः संयतासंयता असंयताश्च सामान्योक्तसंख्याः ।
854. दर्शनानुवादेन चक्षुर्दनिनो मिथ्यादृष्टयोऽसंख्येयाः श्रेणयः प्रतरासंख्येयभागप्रमिताः।अचक्षुर्दर्शनिनो मिथ्यादृष्टयोऽनन्तानन्ताः। उभये च सासादनसम्यग्दृष्ट्यादयः क्षीणकषायान्ताः सामान्योक्तसंख्याः । अवधिदर्शनिनोऽवधिज्ञानिवत् के लदर्श निन. केवलज्ञानिवत् ।
$55. लेश्यानुवादेन कृष्णनोलकापोतलेश्या मिथ्यादृष्ट्यादयोऽसंयतसम्यन्दृष्ट्यन्ताः सामान्योक्तसंख्याः । तेजःपद्मलेल्या मिथ्यादृष्ट्यादयः संयतासंपतान्ताः स्त्रीवेदवत् । प्रमत्ताप्रमत्तसंयताः संख्येयाः । शुक्ललेश्या मिथ्यादृष्ट्यादयः संयतासंयतान्ताः पल्योपमासंख्येयभागप्रमिताः । प्रमत्ताप्रमत्तसंयताः संख्येयाः। अपूर्वकरणादयः सयोगकवल्यन्ता अलेश्याश्च सामान्योक्तसंख्याः ।
856. भव्यानुवादेन भव्येषु मिथ्यादृष्ट्यादयोऽयोगकेवल्यन्ताः सामान्योक्तसंख्याः । अभव्या अनन्ताः। गणस्थानमें मनःपर्ययज्ञानी जीव संख्यात हैं। सयोगी और अयोगी केवलज्ञानियोंकी संख्या सामान्यवत् है।
8 53. संयम मार्गणाके अनुवादसे प्रमत्तसंयतसे लेकर अनिवृत्तिबादर तक सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंकी संख्या सामान्यवत् है। प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानमें परिहार-विशुद्धिसंयत जीव संख्यात हैं । सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयत, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत, संयतासंयत और असंयत जीवोंकी संख्या सामान्यवत् है।
54. दर्शन मार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनवाले मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यात जगश्रेणी प्रमाण हैं जो श्रेणियाँ जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अचक्षुदर्शनवाले मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त हैं। सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तकके उक्त दोनों दर्शनवाले जीवोंकी संख्या सामान्यवत है। अवधिदर्शनवाले जीवोंकी संख्या अवधिज्ञानियों के समान है। केवलदर्शवाले जीवोंकी संख्या केवलज्ञानियों के समान है।
855. लेश्या मार्गणाके अनुवादसे मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंकी संख्या सामान्यवत है। मिथ्यादष्टिसे लेकर संयतासंयत तक पीत और पद्मलेश्यावाले जीवों की संख्या स्त्रीवेदके समान है। प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवाले पीत और पद्मलेश्यावाले जीव संख्यात हैं। मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक शुक्ल लेश्यावाले जीव पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । प्रमत्त और अप्रमत्तसंयत जीव संख्यात हैं । अपूर्वकरणसे लेकर संयोगकेवली तक जीव सामान्यवत्' हैं। लेश्यारहित जीव सामान्यवत् हैं।
56. भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्योंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर अयोगकेवली तक जीव सामान्यवत् हैं । अभव्य अनन्त हैं।
1. संख्यात । 2. संख्यात । 3. सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयत और यथाख्यात विहारशुद्धिसंयत जीव संख्यात हैं। तथा संयतासंयत जीव पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं और असंयत जीव अनन्तानन्त हैं। 4. जिस गुणस्थानवालोंकी जितनी संख्या है सामान्यसे उतनी संख्या उस गुणस्थानमें चक्षु और अचक्षु दर्शनवालोंकी है। 5. मिथ्यात्वमें अनन्तानन्त और शेष गुणस्थानोंमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण । 6. असंख्यात जगणिप्रमाण। 7. जिस गुणस्थानवालों की जितनी संख्या है उतनी है। 8. जिस गुणस्थानवालोंकी जितनी संख्या है उतनी है। केवल मिथ्यात्वमें अभव्योंकी संख्या कम हो जाती है।
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