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--118852 प्रथमोऽध्यायः
| 27 देदाः सासाचनसम्यग्दृष्ट्यादयो निवृत्तिबादरान्ताः सामान्योक्तसंख्याः। अपगतवेदा अनिवृत्तिबादरादयोऽयोगकेवल्यन्ताः सामान्योक्तसंख्याः।
51. कषायानुवादेन क्रोधमानमायासु मिथ्यादृष्ट्यादयः संयतासंयतान्ताः सामान्योक्तसंख्याः । प्रमत्तसंयतादयोऽनिवृत्तिबादरान्ताः संख्येयाः । लोभकषायाणामुक्त एव क्रमः । अयं तु विशेषः सूक्ष्मसांपरायसंयताः सामान्योक्तसंख्याः । अकषाया उपशान्त कषायादयोऽयोगफेवस्यन्ताः सामान्योक्तसंख्याः।
852. ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञानिनः श्रुताज्ञानिनश्च मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टयः सामान्योक्तसंख्याः । विभङ्गज्ञानिनो भिध्यादृष्टयोऽसंख्येयाः श्रेणयः प्रतरासंख्येयभागप्रमिताः। सासावनसम्यग्दृष्टयः पल्योएमासंख्येयभागप्रमिताः । मतिश्रुतज्ञानिनोऽसंयतसम्यग्दृष्ट्यादयः क्षीणकषायान्ताः सामान्योक्तसंख्याः। अवधिज्ञानिनोऽसंयतसम्यग्दष्टिसंयतासंयताः सामान्योक्तसंस्याः। प्रमत्तसंयतादयः क्षीणकषायान्ताः संख्येयाः। मनःपर्ययज्ञानिनः प्रमत्तसंयतादयः क्षीणकषायान्ताः संख्येयाः । केवलज्ञानिन: सयोगा अयोगाश्च सामान्योक्तसंख्याः। और नएसकवेदवाले जीवोंकी वही संख्या है जो सामान्यसे कही है। प्रमत्तसंयतसे लेकर अनिवृत्तिबादर तक स्त्रीवेदवाले और नपुंसक वेदवाले जीव संख्यात हैं। सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिबादर तक पुरुषवेदवालोंकी वही संख्या है जो सामान्य से कही है । अनिवृत्तिबादरसे लेकर अयोगकेवली गुणस्थान तक अपगतवेदवाले जीवोंकी वही संख्या है जो सामान्यसे कही है।
51. कषाय मार्गणाके अनुवादसे क्रोध, मान और माया कपायमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक प्रत्येक गुणस्थानवाले जीवोंकी वही संख्या है जो सामान्यसे कही है। प्रमत्तसंयतसे लेकर अनिवृत्तिबादर तक उक्त कषायवाले जीव संख्यात हैं । यही क्रम लोभकषायवाले जीवोंका जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंकी वही संख्या है जो सामान्यसे कही गयी है । उपशान्त कषायसे लेकर अयोगकेवली गुणस्थान तक कषाय रहित जीवोंकी संख्या सामान्यवत् है ।
852. ज्ञान मार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दष्टि जीवोंकी संख्या सामान्यवत्" है । विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण हैं जो जगणियाँ जगप्रतरके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। सासादनसम्यग्दष्टि विभंगज्ञानी जीव पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तक मतिज्ञानी और श्र तज्ञानी जीवोंकी संख्या सामान्यवत् है। असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत अवधिज्ञानी जीवोंकी संख्या सामान्यवत् है। प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणकषाय गणस्थान तक प्रत्येक गणस्थान में अवधिज्ञानी जीव संख्यात हैं। प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणकषाय तक प्रत्येक
1. -दयो संयतासंयतान्ता: सामान्योक्तसंख्या:। प्रमत्तसंयतादयोऽनिवृत्ति-मु, पा, दि. 1 दि. 2। 2. -दृष्टय: सासा--ता.। 3.-यतान्ता: सामा-मु., दि. 1, दि 2, आ. । 4. यों तो जिस गुणस्थानवालोंकी संख्या बतलायी है वह क्रोध आदि चार भागों में बँट जाती है फिर भी सामान्यसे उस संख्याका अतिक्रम नहीं होता इसलिए क्रोध, मान, माया और लोग कषायमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक प्रत्येक गुणस्थानवालोंकी संख्या ओघके समान बतलायी है। आगे भी जहाँ इस प्रकार संख्या बतलायी हो वहाँ यही क्रम जान लेना चाहिए। 5. संख्यात। 6. अनन्तानन्त । 7. जिस गुणस्थानवालोंकी जितनी संख्या है सामान्यसे उतनी संख्या है। 8. पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण।
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