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+ 118840] प्रथमोऽध्यायः
[23 बादरान्तानि सन्ति । अपगतवेदेषु अनिवृत्तिबादराद्ययोगकेवल्यन्तानि ।।
$36. कषायानुवादेन क्रोधमानमायासु मिथ्यादृष्टयादीनि अनिवृत्तिबादरस्थानान्तानि सन्ति । लोभकषाये तान्येव सूक्ष्मसांपरायस्थानाधिकानि । अकषायः उपशान्तकषायः क्षीणकषायः सयोगकेवली अयोगकेवली' चेति।
8 37. ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञानश्रुताज्ञानविभङ्गज्ञानेषु मिथ्यादृष्टिः सासादनसम्यग्दृष्टिश्चास्ति' । आभिनिबोधिकश्रुतावधिज्ञानेषु असंयतसम्यग्दृष्टयादीनि क्षीणकषायान्तानि सन्ति । मनःपर्ययज्ञाने प्रमत्तसंयतादयः क्षीणकषायान्ताः सन्ति । केवलज्ञाने सयोगोऽयोगश्च ।
38. संयमानुवादेन संयताः प्रमतादयोऽयोगकेवल्यन्ताः । सामायिकच्छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयताः प्रमत्तादयोऽनिवृत्तिस्थानान्ताः। परिहारविशुद्धिसंयताः प्रमत्ताश्चप्रमत्ताश्च । सूक्ष्मसांपरायशुद्धिसंयता एकस्मिन्नेव सूक्ष्मसापरायस्थाने। यथाख्यातविहारशुद्धिसंयता उपशान्तकषायादयोऽयोगकेवल्यन्ताः । संयतासंयता एकस्मिन्नेव संयतासंयतस्थाने। असंयता आद्येषु चतुर्षगुणस्थानेष ।
39. दर्शनानुवादेन चक्षुर्दर्शनाचक्षुर्दर्शनयोमिथ्यादृष्टयादीनि क्षीणकषायान्तानि सन्ति । अवधिदर्शने असंयतसम्यग्दृष्टयादीनि क्षीणकषायान्तानि सन्ति । केवलदर्शने सयोगकेवली अयोगकेवली च।
$ 40. लेश्यानुवादेन कृष्णनीलकपोतलेक्ष्यासु मिथ्यादृष्टयादीनि असंयतसम्यादृष्टयन्तानि वेदमार्गणाके अनुवादसे तीनों वेदोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिबादर तक नौ गुणस्थान हैं । अपगतवेदियों में अनिवृत्तिबादरसे लेकर अयोगकेवली तक छह गुणस्थान हैं।
36. कषाय मार्गणाके अनुवादसे क्रोध, मान और माया कषायमें मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिबादर तक नौ गुणस्थान हैं, लोभकषायमें वे ही नौ गुणस्थान हैं किन्तु सूक्ष्मसाम्पराय एक गुणस्थान और है । उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय, सयोगी और अयोगी ये चार गुणस्थान कषायरहित हैं।
37. ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञान, श्रु ताज्ञान और विभगज्ञानमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि ये दो गुणस्थान हैं। आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रु तज्ञान और अवधिज्ञानमें असयतसम्यग्दृष्टि से लेकर क्षीणकषाय तक नौ गुणस्थान हैं । मनःपर्ययज्ञानमें प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणकषाय तक सात गुणस्थान हैं । केवलज्ञानमें सयोग और अयोग ये दो गुणस्थान हैं।
$ 38. संयम मार्गणाके अनुवादसे प्रमत्तसंयतसे कर अयोगकेवली गुणस्थान तक संयत जीव होते हैं । सामायिक संयत और छेदोपस्थापनशुद्धिसंयत जीव प्रमत्तसंयतसे लेकर अनिवृत्ति गुणस्थान तक होते हैं। परिहारविशुद्धिसंयत जीव प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत होते हैं। सूक्ष्मसाम्परायशद्धिसंयत जीव एक सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमें होते हैं। यथाख्यात विहार शद्धिसंयत जीव उपशान्तकषाय गणस्थानसे लेकर अयोगकेवली गूणस्थान तक होते हैं। संयतासंयत जीव एक सयतासयत गुणस्थानमें होते हैं। असंयत जीव प्रारम्भके चार गुणस्थानोंमें होते हैं।
39. दर्शन मार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन में मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय तक बारह गुणस्थान हैं । अवधिदर्शनमें असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर क्षीणकषाय तक नौ गुणस्थान हैं । केवलदर्शनमें सयोगकेवली और अयोगकेवली ये दो गुणस्थान हैं।
8 40. लेश्या मार्गणाके अनुवादसे कृष्ण, नील और कपोत लेखामें मिथ्यादृ ष्टिसे 1.-वली च । ज्ञाना-ता. न.। 2. दष्टिश्चास्ति । सम्यग्मिथ्यादष्टे: टिप्पणकारकाभिप्रायेण ज्ञातव्यम । आमिनि-न.।
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