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सत्य और भाषा समितिमें अन्तर का कथन ये दस धर्म संवरके कारण कैसे हैं इसको विचार 324 अनुप्रेक्षा बारह भेद
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अनित्यादि बारह अनुप्रेक्षाओंके चिन्तन करने की प्रक्रिया
निर्जरा के दो भेद व उनकी व्याख्या ये अनुप्रेक्षाएँ संवर का कारण कैसे हैं इसका विचार
अनुप्रेक्षा को संवरके हेतुओंके मध्यमें रखनेका प्रयोजन
परीषह की निरुक्ति व प्रयोजन
परीषहजय संवर और निर्जराका कारण कैसे है. इसका विचार
परीषहोंके नाम
जिनके ग्यारह परीषह होते हैं इस बात का निर्देश
जिनके ग्यारह परीषह किनिमित्तक होते हैं इस बातका निर्देश
जिनके मोहनीयका उदय न होनेपर भी ग्यारह परीषह क्यों कहे हैं इस बातका निर्देश
सर्वार्थसिद्धि
'न सन्ति' पद के अध्याहारकी सूचना बादरसाम्पराय के सब परीषह होते हैं इस बात का निर्देश
क्षुधादि बाईस परीयों को किस प्रकार जीतना चाहिए इसका पृथक्-पृथक् विचार
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पूर्वोक्त विधि से परीषहों को सहन करने से संवर होता है इसका निर्देश
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बादरसाम्परायशब्द का अर्थ
किन चारित्रों में सब परीषह सम्भव हैं इस बात का निर्देश
ज्ञानावरणके उदय में जो दो परीग्रह होते हैं उनका निर्देश
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सूक्ष्मसाम्पराय और छद्मस्थ वीतराग के चौदह परीषह होते हैं इस बात का निर्देश सूक्ष्मसाम्पराय जीवके मोहोदयनिमित्तक परीषह क्यों नहीं होते इस शंका का परिहार पूर्वोक्त जीवोंके ये चौदह परीषह किस अपेक्षासे होते हैं इस बात का विचार
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ज्ञानावरण के उदयमें प्रज्ञा परीवह कैसे होता है इसका विचार
दर्शनमोह और अन्तरायके उदय में जो परिषह होते हैं उनका निर्देश
चारित्रमोह के उदय में जो परीवह होते हैं उनका निर्देश
निषद्यापरीपह चरित्रमोहके उदय में कैसे होता है इसका विचार
वेदनीयके उदय में जो परीषह होते हैं इसका विचार
एक जीवके एक साथ कितने परीषह होते हैं इसका विचार
एक जीव के एक साथ उन्नीस परीयह क्यों होते हैं इसका विचार
प्रज्ञा और अज्ञान परीपह एक साथ कैसे होते हैं इसका विचार
चारित्रके पाँच भेद
चारित्रको अलग ग्रहण करने का प्रयोजन सामायिकचारित्रके दो भेद और उनकी
व्याख्या
छेदोपस्थापनाचारित्रका स्वरूप
परिहारविशुद्धिचारित्र का स्वरूप सूक्ष्मसाम्पराय चारित्र का स्वरूप अथाख्यातचारित्रका स्वरूप व अथ शब्दकी सार्थकता
अथाख्यातका दूसरा नाम यथाख्यात है इस बातका सयुक्तिक निर्देश 'इति' शब्द की सार्थकता
सामायिक आदिके आनुपूर्वी कचनकी सार्थकता
बाह्य तपके छह भेद
अनशन आदि की व्याख्या व उसके कथन का
प्रयोजन
परीषह और कायक्लेश में क्या अन्तर है
इस बातका निर्देश
बाह्य तप कहनेका प्रयोजन
अन्तरंग तपके छह भेद
प्रायश्वित आदि की व्याख्या
ध्यान को छोड़कर शेष पाँच अन्तरंग तपों के अवान्तर भेद
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