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सर्वार्थसिद्धौ
[117 $ 25$ 25. एवं प्रमाणनयरधिगतानां जीवादीनां पुनरप्यधिगमोपायान्तरप्रदर्शनार्थमाह___ निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः ॥7॥
826. निर्देशः स्वरूपाभिधानम्। स्वामित्वमाधिपत्यम् । साधनमुत्पत्तनिमित्तम् । अधिकरणमधिष्ठानम । स्थितिः कालपरिच्छेदः । विधानं प्रकारः । तत्र सम्यग्दर्शन किमिति प्रश्ने सस्वार्थश्रद्धानमिति निर्देशो नामादिर्वा । कस्येत्युक्ते सामान्येन जीवस्य । विशेषेण गत्यनुवादेन नरकगतो सर्वास पृथिवीषु नारकाणां पर्याप्तकानामौपशमिकं क्षायोपशमिकं चास्ति । प्रथमायां पथिव्यां पर्याप्तापर्याप्तकानां क्षायिक क्षायोपशमिकं चास्ति । तिर्यग्गतो तिरश्चां पर्याप्तकाना
द्रव्य श्रुतको नी उपचारसे श्रुतज्ञान कहा गया है। दूसरी बातको स्पष्ट करते हुए प्रमाणकी श्रेष्ठतामें दो हेतु दिये हैं। प्रथम हेतु तो यह दिया है कि नय प्ररूपणाकी उत्पत्ति प्रमाणज्ञानसे होती है, अतः प्रमाण श्रेष्ठ है । इसका आशय यह है कि जो पदार्थ प्रमाणके विषय हैं उन्हीं में विवक्षाभेदसे नयको प्रवृत्ति होता है अन्यम नहीं, अत: प्रमाण श्रेष्ठ है। दूसरा हेतू यह दिया है कि सकलादेश प्रमाणके अधीन है और विकलादेश नयके अधीन है, अतः प्रमाण श्रेष्ठ है। आशय यह है कि प्रमाण समग्रको विषय करता है और नय एकदेश को विषय करता है, अत: प्रमाण श्रेष्ठ है। जो बचन कालादिककी अपेक्षा अभेदवत्तिकी प्रधानतासे या अभेदोपपारसे प्रमाणके द्वारा स्वीकृत अनन्त धर्मात्मक वस्तुका एक साथ कथन करता है उसे सकलादेश कहते हैं। और जो वचन कालादिककी अपेक्षा भेदवृत्तिकी प्रधानतासे या भेदोपचारसे नयके द्वारा स्वीकृत वस्तु धर्मका क्रमसे कथन करता है उसे विकलादेश कहते हैं । इनमें से प्रमाण सकलादेशी होता है और नय विकलादेशी, अत: प्रमाण श्रेष्ठ माना गया है यह उक्त कथन का तात्पर्य है। तीसरी बातको स्पष्ट करते हुए नयके द्रव्याथिक और पर्यायाथिक ऐसे दो भेद करके जो नामादि तीन निक्षेपों को द्रव्यार्थिक नयका और भाव निक्षेप को पर्यायाथिक नयका विषय बतलाया है सो इसका यह अभिप्राय है कि नाम, स्थापना और द्रव्य ये तीनों निक्षेप सामान्यरूप हैं, अत: इन्हें द्रव्यार्थिक नयका विषय बतलाया है और भावनिक्षेप पर्यायरूप है, अत: इसे पर्यायाथिक नयका विषय बतलाया है। यहाँ इतना विशेष जानना कि नामको सादश्य सामान्यात्मक माने बिना शब्दव्यवहारकी प्रवत्ति नहीं हो सकती है, इसलिए नाम निक्षेप द्रव्याथिक नयका विषय है और
की जिसमें स्थापना की जाती है उनमें एकत्वका अध्यवसाय किये बिना स्थापना नहीं बन सकती है, इसलिए स्थापना द्रव्यार्थिक नयका विषय है। शेष कथन सुगम है।
825. इस प्रकार प्रमाण और नयके द्वारा जाने गये जीवादि पदार्थोंके जाननेके दूसरे उपाय बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
निवेश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधानसे सम्यग्दर्शन आदि विषयोंका मान होता है ॥7॥
8 26. किसी वस्तुके स्वरूपका कथन करना निर्देश है । स्वामित्वका अर्थ आधिपत्य है। जिस निमित्तसे वस्तु उत्पन्न होती है वह साधन है । अधिष्ठान या आधार अधिकरण है। जितने काल तक वस्तु रहती है वह स्थिति है और विधानका अर्थ प्रकार या भेद है । 'सम्यग्दर्शन क्या है' यह प्रश्न हआ, इस पर 'जीवादि पदार्थोंका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है' ऐसा कथन करना निर्देश है या नामादिकके दारा सम्यग्दर्शनका कथन करना निर्देश है। सम्यग्दर्शन किसके होता है ? सामान्यसे जीवके होता है और विशेषकी अपेक्षा गति मार्गणाके अनुवादसे नरकगतिमें सब 1. -दिर्वा । सम्यग्दर्शनं. क-- मु.।
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