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विषयानुक्रमणिका
1107 प्रायश्चित्तके नौ भेद 346 रौद्रध्यानके चार भेद व स्वामी
353 आलोचना आदि नौ भेदों की व्याख्या 346 देशसंयतके रौद्रध्यान कैसे होता है इस विनय तपके चार भेद 348 बात का विचार
353 ज्ञान विनय आदि चार भेदों की व्याख्या 348 संयतके रौद्रध्यान न होने का कारण वैयावृत्य तपके दस भेद 348 धर्म्यध्यानके चार भेद
353 दयावृत्य तप के दस भेदों का कारण 348 विषय पदकी निरुक्ति आचार्य आदि पदों की व्याख्या
348 आज्ञाविचय आदि चारोंकी व्याख्या स्वाध्याय तप के पांच भेद 349 धबध्यानके चारों भेदोंके स्वामी
354 वाचना आदि पदों की व्याख्या व प्रयोजन 349 विशेषार्थ द्वारा कमौके उदय व उदीरणाका व्युत्सर्ग तपके दो भेद 349 विशेष विनेचन
355 व्युत्सर्ग पद की निरुक्ति व भेद निर्देश 349 आदिके दो शुक्लध्यान पूर्वविद्के होते हैं .. 357 बाह्य उपधिके प्रकार .. 349 पूर्वविद् पदका अर्थ
357 अन्तरंग उपधि के प्रकार
3.9 श्रेणी आरोहणके पूर्व धर्म्यध्यान होता है व्युत्सर्ग तपका प्रयोजन
349 और बाद में शुक्लध्यान होता है इस ध्यान का प्रयोक्ता, स्वरूप व काल परिमाण 350 बातका निर्देश
357 आदिके तीन संहनन उत्तम है इसबातका निर्देश 350 अन्तके दो शुक्लध्यान केवलीके होते हैं 357 ध्यानके साधन ये तीनों हैं पर मोक्षका साधन शुक्लध्यानके चार भेदोंके नाम
3:8 प्रथम संहनन ही है इस बात का निर्देश 350 शुक्लध्यानके चारों भेदोंके स्वामी
358. एकाग्रचिन्तानिरोध पदकी व्याख्या 350 आदिके दो शुक्लध्यानोंमें विशेषताका कथन 358 चिन्तानिरोधको ध्यान कहनेसे आनेवाले
एकाश्रय पदका तात्पर्य
358 दोषका परिहार
350 दूसरा शुक्लध्यान अविचार है इस बातका ध्यान के चार भेद 351 निर्देश
359 आर्त आदि पदोंकी व्याख्या 351 वितर्क शब्दका अर्थ
359 चारों प्रकार के ध्यानों मेंसे प्रत्येकके दो दो वीचार पदकी व्याख्या भेद क्यों हैं इस बातका निर्देश
351 अर्थ, व्यंजन, योग और संक्रान्ति पदकी अन्तके दो ध्यान मोक्षके हेतु हैं 351 व्याख्या
359 पर शब्दसे अन्तके दो ध्यानोंका ग्रहण कैसे अर्थसंक्रान्तिका उदाहरण
359 होता है इस बात का निर्देश 351 व्यंजनसंक्रान्तिका प्रकार
359 आर्तध्यान के प्रथम भेदका लक्षण 352 योगसंक्रान्तिका प्रकार
359 अमनोज्ञ पदकी व्याख्या
352 मुनि पृथक्त्ववितर्क दीचारका ध्यान किस सिए आतध्यान द्वितीय भेदका लक्षण
352 और कब करता है इस बातका निर्देश 360 वेदना नामक आर्तध्यानका लक्षण 352 मुनि एकत्ववितर्कका ध्यान किस लिए और . वेदना पद की व्याख्या
352 कब करता है इस बातका निर्देश . 360 निवाम नामक आर्तध्यान का लक्षण 352 मुनि सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति ध्यान किस लिए और चारों प्रकारके आर्तध्यानके स्वामी *353 कब करता है इस बातका निर्देश
360 अविरत आदि पदों की व्याख्या
353 मुनि व्युच्छिन्नक्रियानिवति ध्यान किस लिए अविरत आदि तीनोंके आदिके तीन ध्यान
और कब करता है इस बातका निर्देश 361 होते हैं किन्तु निदान प्रमत्तसंयतके नहीं
साक्षात् मोक्षका कारण क्या है इस बातका होता इस बातका निर्देश 353 निर्देश
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