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सर्वार्थसिद्धि
अनुभव आदि शब्दोंका अर्थ कालके दो भेद और इनमेंसे प्रत्येकके छह
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166 मनुष्योंके भेद
आर्यशब्दका अर्थ और आर्योके भेद 166 म्लेच्छोंके भेद व उनके विशेष वर्णनके 166 प्रसंगसे अन्तर्वीपों का वर्णन 166 शक, यवन आदि कर्मभूमिज म्लेच्छ है इस
बातका निर्देश 167 कर्मभूमि कहाँ कहाँ है
भोगभूमियाँ कहाँ कहाँ हैं
कर्म शब्दका अर्थ 167 कर्मभूमि और भोगभूमि बननेका कारण
मनुष्योंकी उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति 168 पल्यके तीन भेद और उनका प्रमाण लाने 168 की विधि
उद्धारसागरका प्रमाण 168 द्वीप-समुद्रोंकी गणना 168 अद्धासागरका प्रमाण 168. अद्धासागरसे किन किनकी गिनती होती है
इसका विचार 169 तिर्यञ्चोंकी उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति 169 तिर्यग्योनिज शब्दका अर्थ
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कालके दोनों भेदोंकी कल्प संज्ञा सुषमामुषमा आदि कालोंका प्रमाण आदि शेष भूमियाँ अवस्थित हैं हैमवतक आदि मनुष्योकी आयु हैमवत आदि क्षेत्रों में कौनसा काल प्रवर्तता है व वहाँके मनुष्योंका रंग व आहार आदि किस प्रकारका है दक्षिणके क्षेत्रोंके समान उत्तरके क्षेत्रोंका वर्णन है विदेहमें कालका प्रमाण विदेहमें काल, मनुष्योंकी ऊँचाई, आहार
और आयुका विचार पूर्वका प्रमाण भरतक्षेत्रके विष्कम्भका सोपपत्ति विचार जम्बूद्वीपके बाद कौन-सा समुद्र है और तदनन्तर कौन-सा द्वीप है इसका निर्देश घातकीखण्ड द्वीपके क्षेत्रादिका विचार पातकीखण्डको दक्षिण और उत्तर इन दो भागोमें विभाजित करनेवाले दो इष्वाकार पर्वत घातकीखण्ड-दीपमें दो मेर घातकीखण्ड द्वीपमें दो-दो भरतादि क्षेत्र और दो-दो हिमवान् आदि धातकीखण्ड द्वीपमें क्षेत्रों व पर्वतोंका संस्थान व विष्कम्भ घासकीखण्ड द्वीपमें सपरिवार पातकीवृक्ष घातकीखण्ड द्वीपके बाद कालोद समुद्रव उसका विस्तार पुष्करार्धमें क्षेत्रादिका विचार पुष्करार्धमें इष्वाकार पर्वत व पुष्कर वृक्ष आदिका निर्देश पुष्करा; संज्ञाका करण मानुषोत्तर पर्वतके पहले मनुष्य हैं मानुषोत्तर पर्वतका विशेष वर्णन मानुषोत्तर पर्वतको लाँधकर ऋद्धिधारी मनुष्य भी नहीं जा सकते
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चौथा अध्याय 169 देवोंके चार भेद
177 169 देव शब्दका अर्थ निकाय शब्दका अर्थ
177 169 आदिके तीन निकायोंमें लेश्या विचार 177 देवनिकायों में अन्तभेदोंका निर्देश
178 169 कल्पोपपन्न पद देनेकी सार्थकता
178 169 देवनिकायोंमें अन्तर्भेदोंका नामनिर्देश 178 इन्द्र आदि शब्दोंका अर्थ
179 169 व्यन्तर और ज्योतिषियों में कितने अन्तर्भेद 170 हैं इसका विचार
179 प्रथम दो निकायों में इन्द्रोंका विचार
180 170 प्रत्येक निकायके अवान्तर भेदोंके इन्द्रोंके नाम 180 170 ऐशान कल्पोंमें प्रवीचारका विचार 170 शेष करूपोंमें प्रवीचारका विचार
181 170 प्रवीचार पद देनेकी सार्थकता
182 कल्पातीत देवोंमें प्रकीचार नहीं है इस 170 बातका निर्देश
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