________________
100]]
सर्वार्थसिद्धि
20
...
214
ये धर्मादिक द्रव्य हैं इस बातका निर्देश 202 लोक शब्दका अर्थ
211 द्रव्य पदकी व्युत्पत्ति
202 आकाशके दो भेद और उनका अर्थ 211 ये धर्मादिक द्रव्यत्व नामक सामान्यके योगसे लोकालोक विभागका कारण
211 द्रव्य नहीं हैं इस बातका सयुक्तिक विचार 202
धर्म और अधर्म द्रव्य लोकव्यापी हैं 211 'गुणसमुदायो द्रव्यम्' ऐसा माननेमें भी आपत्ति 202 पुद्गल द्रव्य लोकके एक प्रदेश आदिमें रहते हैं 212 द्रव्य पदको व्युत्पत्ति ओर उसकी सिद्धि 202
मूर्त पुद्गल एकत्र कैसे रहते हैं इनका विचार 212 'द्रव्याणि' बहुवचन देनेका कारण व अन्य
जीव लोकके असंख्येयभाग आदिमें रहते हैं 212 विशेषताओंका निर्देश
203 सशरीरी अनन्तानन्त जीव असंख्येयभाग जीव भी द्रव्य हैं इस बातका निर्देश 203 आदिमें कैसे रहते हैं इसका विचार 213 नैयायिकोंके द्वारा माने गये द्रव्योंके अन्तर्भाव
जीवके असंख्येयभाग आदिमें रहनेका कारण 213 की सिद्धि 203 धर्म और अधर्म द्रव्यका उपकार
214 द्रव्योंकी विशेषता
205 गति, स्थिति और उपग्रह पदका अर्थ 114 नित्य आदि प्रत्येक पदकी व्याख्या
205
उपग्रह पदकी सार्थकता पुद्गल द्रव्य रूपी है इसका विचार
205
गति और स्थितिको धर्म और अधर्म द्रव्यका रूप पदका अर्थ
206 उपकार माननेका कारण
215 आकाश पर्यन्त एक एक द्रव्य हैं इसका विचार 206
गति और स्थितिके प्रतिबन्ध न होनेका कारण 215 सूत्रमें द्रव्य पदके ग्रहण करनेकी सार्थकता 206
धर्म और अधर्म द्रव्यकी सिद्धि धर्मादिक द्रव्य निष्क्रिय हैं
215 207 अवकाशका उपकार
216 निष्क्रिय शब्दका अर्थ
207
निष्क्रिय धर्मादि द्रव्योंको आकाश कैसे धर्मादिक द्रव्य निष्क्रिय होने पर भी उनमें
अवगाह देता है इसका विचार
216 उत्पादादिकी सिद्धि
208
दो स्कन्धों के परस्पर टकरानेसे आकाशके उत्पादके दो भेद
208 अवकाश दानकी हानि नहीं होती
216 निष्क्रिय धर्मादिक द्रव्य गति आदिके हेतु
सूक्ष्म पुद्गल परस्पर अवकाश देते हैं तो भी कैसे हैं इसका विचार
208 आकाशके अवकाशदानकी हानि नहीं धर्म, अधर्म और एक जीवके प्रदेश 208 होती इस बातका समर्थन असंख्येयके तीन भेद
208 पुद्गलोंका उपकार प्रदेश शब्दका अर्थ
208 कार्मण शरीरके पुद्गलपनेकी सिद्धि 217 धर्म और अधर्म द्रव्य लोकाकाशव्यापी हैं 208 वचनके दो भेद और उनका स्वरूप व पूदगलजीव शरीरपरिमाण होकर भी लोकपूरण समुद्घात पनेकी सिद्धि के समय लोकाकाशव्यापी होता है
208 मनके दो भेद और उनका स्वरूप व पुद्गलआकाशके प्रदेशोंका विचार
209 पनेकी सिद्धि अनन्त शब्दका अर्थ
209 मन द्रव्यान्तर नहीं है इसकी सयुक्तिक सिदि 218 पुद्गलोंके प्रदेशोंका विचार
209 प्राण और अपान शब्दका अर्थ 'ब' पदकी सार्थकता
209 मन, प्राण और अपानके पुद्गलपनेकी सिद्धि 219 अनन्तके तीन भेद
209 आत्माके अस्तित्वकी सिद्धि असंख्यातप्रदेशी लोकमें अनन्तानन्त प्रदेशी
पुद्गलोंके अन्य उपकार
219 स्कन्ध कैसे समाता है इसका विचार 209 सुख, दुःख आदि शब्दोंका अर्थ
219 अणुके दो आदि प्रदेश नहीं होते
उपग्रह पदकी सार्थकता
220 सब द्रव्योंका लोकाकाशमें अवगाह है 210 जीवोंका उपकार
220 आधाराधेयविचार
210 कालका उपकार
216
217
218
210
219
219
222
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.