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विषयानुक्रमणिका
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222
234
226
वर्तना शब्द का अर्थ
222 गुणवैषम्यमें सदृशोंका भी बन्ध होता है यह . काल द्रव्य क्रियावान नहीं है इसका समर्थन 222 बतलानेके लिए सूत्रमें सदृश पदका कालके अस्तित्वकी सिद्धि
ग्रहण किया
234 परिणाम पदका अर्थ
दो अधिक गुणवालोंका बन्ध होता है क्रिया पदका अर्थ 223 बन्धके प्रकारोंका विशेष विवेचन
234 परत्व और अपरत्वका विचार
223 बन्ध होने पर अधिक गुणवाले पारिणामिक वर्तनासे पृथक् परिणामादिके ग्रहण करनेका
होते हैं
235 प्रयोजन
223 द्रव्य का लक्षण
237 पुद्गलका लक्षण
273 एक द्रव्यके दूसरे द्रव्यसे भिन्न होनेके कारणकी स्पर्श आदि पदोंका अर्थ व उनके भेद 223 सयुक्तिक सिद्धि
237 'रूपिणः पुद्गलाः' सूत्रके रहते हुए भी इस
काल भी द्रव्य है
238 कालमें द्रव्यपने की सिद्धि
224 सूत्रके कहनेका कारण
239 कालद्रव्यको अलग कहनेका कारण
224 पुद्गलकी व्यञ्जन पर्यायोंका निर्देश
239 विशेषार्थ द्वारा कालका विचार 224
240 शब्दके दो भेद व उनका विशेष विचार
कालकी पर्याय अनन्त समय रूप हैं इसकी बन्धके दो भेद व उनका विशेष विचार 225
सिद्धि
241 सौक्ष्म्यके दो भेद व उनका विचार
225
गुण का लक्षण
225 स्थौल्य के दो भेद व उनका विचार
242
गणका लक्षण पर्यायों में न जाय इसकी संस्थानका अपने भेदोंके साथ विचार 225
व्यवस्था
242 भेदके छह भेद व उनका विचार
225 परिणामका स्वरूप
243 तम आदि शेषका स्वरूप निर्देश
परिणामके दो भेद और उनकी सिद्धि पुद्गलके भेद
226 अणु शब्दका अर्थ
226
छठा अध्याय स्कन्ध शब्दका अर्थ
226 स्कन्धोंकी उत्पत्तिका हेतु 227 योगका स्वरूप
244 भेद और संघात पदका अर्थ
227 कर्म शब्दका अर्थ
244 बहुवचन निर्देशकी सार्थकता
227 योगके भेद
244 अणुकी उत्पत्तिका हेतु
228
काय, वचन और मनोयोगका स्वरूप 244 'भेदसंघातेभ्यः' इस सूत्रमें भेद पदके ग्रहण
आस्रवका स्वरूप
245 करनेका प्रयोजन
पुण्यास्रव और पापास्रव
245 अचाक्षष चाक्षष कैसे होता है इसका विचार 228 ये कायादि तीनों योग शुभ और अशुभ इन द्रव्यका लक्षण 229 दो भागों में विभक्त हैं
245 सत्की व्याख्या 229 शुभयोगका स्वरूप
245 उत्पाद आदि पदोंका अर्थ 229 अशुभ योगका स्वरूप
245 युक्त पद किस अर्थ में ग्रहण किया है
पुण्य और पाप पदकी व्याख्या
245 इसका विचार
229 साम्परायिक और ईर्यापथ.आस्रव कितने नित्य पदकी ब्याख्या 230 होते हैं
246 मख्यता और गौणतासे अनेकान्तकी सिद्धि 231 आस्रवके स्वामीके दो भेद
246 पुद्गलों के बन्धका कारण 232 कषाय शब्दका अर्थ
246 जघन्य गुणवालोंका बन्ध नहीं होता 233 सपराय शब्द का
246 गुणसाम्यमें सदृशों का बन्ध नहीं होता 233 ईर्या शब्दका अर्थ
246
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