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प्रस्तावना
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विद्वानोंके मतों में यदि कुछ अन्तर प्रतीत होता है तो इतना ही कि पं० सुखलालजी वाचक उमास्वातिको सवस्त्र श्वेताम्बरपरम्पराका और प्रेमीजी यापनीय परम्पराका मानते हैं।
3. श्रवणवेलगोलाके चन्द्रगिरि पर्वतपर कुछ ऐसे शिलालेख पाये जाते हैं जिनमें गृद्धपिच्छ उमास्वातिको तत्त्वार्थसूत्रका कर्ता कहा गया है। इन शिलालेखों में से 40, 42, 43,47 और 50वें शिलालेखों में गद्धपिच्छ विशेषणके साथ मात्र उमास्वातिका उल्लेख है और 105 व 108वें शिलालेखों में उन्हें तत्त्वार्थसूत्रका कर्ता कहा गया है। ये दोनों शिलालेख डॉ. हीरालालजीके मतानुसार। क्रमश: शक सं0 1320 और शक सं0 1355 के माने जाते हैं । शिलालेख 155 का उद्धरण इस प्रकार है
'श्रीमानमास्वातिरयं यतीशस्तस्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार । यन्मुक्तिमार्गाचरणोधतानां पाथेयमध्यं भवति प्रजानाम् ॥15॥ तस्यैव शिष्य उजनि गपिच्छद्वितीयसंज्ञस्य बलाकपिच्छः ।
यत्सूषितरत्नानि भवन्ति लोके मुक्त्यंगनामोहनमणानानि ॥16॥' यतियोंके अधिपति श्रीमान् उमास्वा तिने तत्त्वार्थसूत्रको प्रकट किया जो मोक्षमार्गके आचरणमें उद्यत हुए प्रजा जनों के लिए उत्कृष्ट पाथेयका काम देता है। गृद्धपिच्छ है दूसरा नाम जिनका ऐसे उन्हीं उमास्वातिके एक शिष्य बलाक पिच्छ थे। जिनके सूक्तिरत्न मुक्त्यंगनाके मोहन करने के लिए आभूषणोंका काम देते है। शिलालेख 108 में इसी बातको इस प्रकार लिपिबद्ध किया गया है
'अभूवुमास्वातिमुनिः पवित्र वंशे तबीये सकलार्थवेदी। सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मनिपुङ्गवेन ॥11॥' 'स प्राणिसंरक्षणसावधानो बभार योगी किल गढपक्षान् ।
तदा प्रभृत्येव बुषा यमाहुराचार्यशम्दोत्तरगयपिच्छम् ॥22॥' तस्वयंसूत्रपर विभिन्न समयों में छोटी-बड़ी टीकाएँ तो अनेक लिखी गयी हैं, पर उनमेंसे विक्रमकी 13वीं शतीके विद्वान् बालचन्द: मुनिकी बनायी हुई एक ही कनडी टीका है जिसमें उमास्वाति नामके साथ गद्धपिच्छाचार्य नाम भी दिया है।
4. पं० जुगुल किशोरजी मुख्तार कर्ता विषयक इसी मतको प्रमाण मानकर चलते हैं। उन्होंने गडपिच्छको उमास्वातिका ही नामान्तर कहा है।'
5. दिगम्बर परम्परा में मूल तत्त्वार्थसूत्रकी जो प्रतियां उपलब्ध होती हैं, उनके अन्त में एक श्लोक आया है
'तस्वार्थसूत्रकरिं गडपिच्छोपलक्षितम् ।
वन्दे गणीन्द्रसंजातमुमास्वामिमुनीश्वरम् ॥ इस में गद्धपिच्छसे उपलक्षित उमास्वामी मुनीश्वरको तत्त्वार्थसूत्रका कर्ता बतलाकर उन्हें गान्द्र कहा गया है। 6 नगर ताल्लुकेके एक शिलालेख में यह उल्लेख उपलब्ध होता है
'तत्त्वार्थसूत्रकारममास्वातिमुनीश्वरम् ।
श्रुतकेवलिदेशीयं वन्देऽहं गुणमन्दिरम् ॥' इसमें तत्त्वार्थसूत्रके कर्ताका नाम उमास्वाति बतलाया है और उन्हें श्रुतकेवलिदेशीय तथा गुणमन्दिर कहा गया है।
7. आचार्य कुन्दकुन्दने तत्त्वार्थसूत्रकी रचना की है ऐसा भी उल्लेख देखने में आता है जो तत्त्वार्थ
1. देखो माणिक चन्द्र ग्रन्थमालासे प्रकाशित शिला-लेख संग्रह, भाग।। 2. देखो पं० कैलाशचन्द्रजीका तत्त्वार्थसूत्र, प्रस्तावना पृ० 161 3. देखो मा० ग्र० से प्रकाशित रत्नकरण्डक की प्रस्तावना, पृष्ठ 1451
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