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प्रस्तावना
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होता है कि इनका एक नाम 'देव' भी था। मालूम पड़ता है कि इनका दीक्षानाम 'देवनन्दि' होनेसे उसके संक्षिप्त रूप 'देव' इस पद द्वारा उक्त आचार्योंने इनका नामोल्लेख किया है। अतएव यह कोई स्वतन्त्र नाम न होकर 'देवनन्दि' इस नामका ही संक्षिप्त रूप प्रतीत होता है।
3 संघ-संघोंकी उत्पत्तिका इतिहास इन्द्रनन्दिने अपने श्रुतावतार में दिया है। वे लिखते हैं कि जब सौ योजनके मुनि मिलकर अष्टांगनिमित्तज्ञ और धारण-प्रसारण आदि विशुद्ध क्रियाके पालनेवाले आचार्य अहंबलि की देखरेख में युगप्रतिक्रमण कर रहे थे उस समय युगके अन्तिम दिन युगप्रतिक्रमण करते हुए आचार्य अर्हद्बलिने आये हुए मुनिसमाजसे पूछा कि क्या सभी यतिजन आ गये हैं ? इसपर यति जनोंने उत्तर दिया कि अपने-अपने सकल संघके साथ हम आ गये हैं। तब यतिजनोंके इस उत्तरको सुनकर उन्होंने जान लिया कि यह कलिकाल है। इसमें आगे यतिजन गणपक्षपातके भेदसे रहेंगे, उदास भावसे नहीं रहेंगे और ऐसा विचार कर उन्होंने जो गुफासे आये थे उनमेंसे विन्हींको 'नन्दि' संज्ञा दी और विन्हीं को 'वीर' संज्ञा दी। जो अशोकवाटिकासे आये थे उनमें से किन्हींको 'अपराजित' संज्ञा दी और किन्हीं को 'देव' संज्ञा दी। जो पंचस्तूपके निवासी वहाँ आये थे उन मेंसे किन्हीं को 'सेन' संज्ञा दी और विन्हीं को 'भद्र' संज्ञा दी। जो शाल्मली महाद्रुमसे आये थे उन मेंसे किन्हींको गणधर' संज्ञा दी और किन्हीं को 'गुप्त' संज्ञा दी और जो खण्डकेसर दुमके मूलसे आये थे उनमेंसे किन्हींको सिंह' संज्ञा दी और किन्हींको चन्द्र' संज्ञा दी।
इससे विदित होता है कि जो मुलसंघ पहले संघभेद व गण-गच्छके भेदसे रहित होकर एक रूपमें चला आ रहा था वह यहाँ आकर अनेक भागों में विभक्त हो गया। यह तो नाना संघोंकी उत्पत्तिकी कथा है। अब जिसे यहाँ पर नन्दिसंघ कहा गया है उसकी परम्पराको देखिएशुभचन्द्राचार्य अपने पाण्डवपुराणमें अपनी गुर्वावलीका उल्लेख करते हुए लिखते हैं
श्रीमलसंधेऽजनि नन्विसंघस्तस्मिन् बलात्कारगणोऽतिरम्यः ।
तत्राभवत्पूर्वपदांशवेदी श्रीमाधनन्दी नरदेववन्धः ॥2॥ इसमें कहा गया है कि नन्दिसंघ बलात्कार गण मूलसंघके अन्तर्गत है। उसमें पूर्वोके एकदेश ज्ञाता और मनुष्यों व देवोंसे पूजनीय माघनन्दी आचार्य हुए।
इतना कहने के बाद इस गुर्वावली में माघनन्दीके बाद 4 जिनचन्द्र, 5 पद्मनन्दी (इनके मतसे पद्मनन्दीके चार अन्य नाम थे-कुन्दकुन्द, वक्रग्रीव, एलाचार्य और गद्धपृच्छ), 6 तत्त्वार्थसूत्रके कर्ता उमास्वाति, 7 लोहाचार्य, 8 यश:कीति, 9 यशोनन्दी और 10 देवनन्दी के नाम दिए हैं। ये सब नाम इसी क्रमसे नन्दिसंघकी पट्टावलीमें भी मिलते हैं। आगे इस गुर्वावली में 11 गुणनन्दीके बाद 12 वचनन्दीका नाम आता है। जब कि नन्दिसंघकी पट्टावलीमें 11 जयनन्दी और 12 गुणनन्दी इन दो नामोंके बाद 13 वजनन्दीका नाम आता है।
___ यद्यपि इससे आगेकी दोनोंकी आचार्य परम्परा करीब-करीब मिलती हुई हैं । परन्तु विशेष प्रयोजन न होनेसे उसे हम यहाँ नहीं दे रहे हैं। प्रकृतमें इन आधारोंसे हमें इतना ही सूचित करना है कि आचार्य पूज्यपाद मूलसंघके अन्तर्गत नन्दिसंघ बलात्कार गणके पट्टाधीश थे। तथा अन्य प्रणाणोंसे यह भी विदित होता है कि इनका गच्छ 'सरस्वती' इस नामसे प्रख्यात था। हमारे प्रसिद्ध आचार्य कुन्दकुन्द और गृद्धपिच्छ (उमास्वाति) इसी परम्पराके पूर्ववर्ती आचार्य थे यह भी इससे विदित होता है।
4. जीवन-परिचय-आचार्य पूज्यपाद कौन थे, उनके माता-पिताका नाम क्या था, वे किस कुलमें
।. देखो जैन सिद्धान्तभास्कर भाग 1, किरण 4, पृ० 51। 2. देखो जैनसिद्धान्तभास्कर, भाग 1, किरण 4, पृ. 43 में उद्धृत शुभन्द्राचार्यकी पट्टावली।
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