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आदर्श जीवन ।
होगई । इस लिए हमारे चरित्रनायक और अन्य कुछ साधुओंको उनकी सेवाके लिए आचार्यश्रीने वहीं छोड़ा और आपने जयपुरसे विहार किया ।
श्रीहर्षविजयजी महाराजकी तबीअत सुधर जानेपर उन्होंने दिल्लीकी तरफ विहार किया । उस समय उनके साथ हमारे चरित्रनायक, श्रीशुभविजयजी और श्रीमोतीविजयजी थे। तीनों सेवा भक्ति करते हुए उन्हें आराम से दिल्ली ले गये ।
दिल्ली में सभी आचार्य महाराजके साथ हो गये । मगर आचार्यश्रीको पंजाब में जाना था और भाईजी महाराजकी तबीअत अभीतक अच्छी नहीं हुई थी । दिल्लीमें हकीमोंका इन्तजाम भी अच्छा था इसलिए उन्हें इलाज करानेके लिए वहीं छोड़ कुछ साधुओं को उनकी सेवा शुश्रूषाके लिए रख आचार्यश्रीने वहाँसे विहार किया । रवाना होते समय श्रीसूरिजी महाराजने हमारे चरित्रनायकको - जो कि आयुमें उस समय सबसे छोटे थे और जिनपर उनकी खास कृपा भी थी - फर्माया :- “ दिल्लीमें अच्छे अच्छे हकीम हैं । यहीं तुम लोग भाईजीका इलाज कराना। इनकी सेवामें कमी न करना । ये आराम हो जायँ तब तुम हमसे आ मिलना । अपना चौमासा साथ ही होगा । यदि इनकी शारीरिक दुर्बलताके कारण यहीं चौमासा करना पड़ेगा तो भी कुछ हानि नहीं है । क्योंकि यहाँका श्रीसंघ तुम्हारी सेवा, भक्तिमें कुछ कमी नहीं करेगा। मैं जानता हूँ तुम तीनों ही ( श्रीशुभविजयजी,
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