________________
૨૮૩
आदर्श जीवन।
रुपये सेठ कल्याणजी खुशालने, अपने स्वर्गवासी पुत्र गुलाबचंदके स्मार्थ, दिये थे । उस औषधालयसे केवल जैन ही नहीं बल्के जैनेतर भी लाभ उठा सकते हैं।
आपने बंबईमें स्थापित महावीर जैन विद्यालयके लिए भी उपदेश देकर सहायता भिजवाई थी।
वैरावलसे विहारकर आप माँगरोल पधारे । माँगरोलमें अठाई महोत्सवादि हुए । माँगरोलमें अहमदाबादके श्रीयुत मोहनलाल मगनलाल जौहरीका एक पत्र आया था । उसमें लिखा था:-" किसी जिनालयमें, मूलनायकजीके सिवाय, सौ डेढ़ सौ बरस पहलेसे कोई प्रतिमाजी विराजमान हों उनको (प्रतिमाजीको) किसी ऐसे दूसरे मंदिरमें या किसी दूसरे तीर्थमें स्थापित करने दे सकते हैं या नहीं जिसमें लोग विशेषरूपसे दर्शनका लाभ उठा सकें । इस विषयमें आपका जो अभिप्राय हो लिख भेजनेकी कृपा करें।" ___ इसके उत्तरमें आपने भावनगरसे लिखा था:-" + + + हमारी सम्मतिमें यह कार्य बहुत ही उत्तम है। खुशीसे दे सकते हैं । जब जरूरतके माफिक मूलनायक भी-जिनके नामहीसे मंदिरादि सभी कार्य हुए होते हैं-एक जगहसे उठाकर दूसरी जगह, जहाँ विशेष उत्तम और अधिक भक्ति द्वारा अधिक लोगोंको लाभ हो,-दिये गये हैं, तब मूलनायकके सिवायकी तो बात ही क्या है ? तुमको याद होगा कि उनासे, कावीसे, खंभातसे ऐसे अनेक स्थलोंसे दूसरी जगह, तुम लिखते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org