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आदर्श जीवन।
उर्दू कवि ने इस भाव को बहुत अच्छी तरह से व्यक्त किया है।
अलग हम सब से रहते हैं मिसाले तार तम्बूरा ।
जरा छेड़े से मिलते हैं मिला ले जिसका जी चाहे ॥ साधु महाराज की मुख मुद्रा को देखते ही उसकी गम्भीरता और शान्तता का प्रभाव यदि श्रोताओं पर पड़े तभी वे शान्त भाव से साधु मुनिराज के उपदेशामृत को भली भाँति 'पान कर सकते हैं । कहा भी है
चन्दनं शीतलं लोके चन्दनादपि चन्द्रमा ।
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये, शीतलः साधु संगमः ॥ इस लिये साधु पुरुषों को सदा शान्त भाव में ही रमण करना चाहिये । परोपकार साधुओं का एक विशिष्ट गुण है । यदि कोई प्रतिपक्षी कष्ट भी दे तब भी साधु पुरुषों को तो दीपक की तरह उसके अज्ञानान्धकार को कष्ट सह कर भी दूर करने का प्रयत्न करना चाहिये।
अपने को जलाकर और को रोशन करना ।
यह तमाशा हमने फकत चिराग में देखा ॥ 'परोपकार के कार्य में कष्टों के उपस्थित होने पर भाग जाना 'परोपकारी का काम नहीं । ऐसा कोई समय नहीं था और न होगा जब कि सारा संसार एक ही रंग में रंगा हुआ नज़र आवे । सभी लोग अवगुणान्वेषी और सभी गुणग्राही नहीं होते। संसार में यदि गुणग्राही लोग हैं तो अवगुण देखने वालों की भी कमी नहीं; परन्तु परोपकारी पुरुष इन बातों की कुछ भी
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