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(१८०) जिनवरका दर्श करके तू जीवन सुधार ले। ___वल्लभ हैं गुनकी खान यह निश्चय तू धार ले ॥ गुरु बिन मिले न ज्ञान ये मनमें विचार ले। ___ कहता दसौंदीराम ये हिरदेमें धार ले ॥ नादान छोड़ भावना अज्ञानकी भरी ॥ गु० ॥७॥
-श्रीयुत दसौंदी राम ।
(३) १ बोल बाला हो वल्लभविजयका, है जो प्रशिष्य आनंदविजयका। ___कह रहे हैं वे सबको सुनाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर । २ जन्म अच्छे घराने में पाया, सरपे था वालदी का भी साया।
कहते दुनियासे अब दिल हटाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ॥ ३ दुनिया तोहै यह बिलकुल ही फानी, चार दिन की ही बस जिदगानी। __लेना क्या है यहाँ दिल लगाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ॥ ४ पुण्य पहिले जन्म में किया था, जिससे मानुष जन्म यह लिया था।
पुण्य वैसे ही अब भी कमाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ।। ५ पाओं में अपने काँटा लगे जो, दरद करती है हरदम जगह वो।
मत करो जुल्म दिल में यह लाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ।। ६ हरगिज़ हरगिज़ न रेशम को पहनो, मेरी हिन्दु मुसलमान बहनो।
बनता यह लाख जानें गंवाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ॥ ७ पहिले कीड़ों को मेहनत से पालें, फिर गरम पानी में सब डुबा लें।
कारखानों में देखो यह जाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ॥ ८ खाँड मुतलक न खाओ विदेशी, होती है इससे पापों में बेशी।
मिलता क्या पेट कबरें बनाकर, पालो मुक्ति कर्म को खपाकर ।।
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