Book Title: Adarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 821
________________ (२३६) सेठ हेमचंद भाईके मातापिता तो पहले ही कालधर्मको प्राप्त हो गये थे । वे जाते समय उनके घरमें चार लड़के, दो लड़कियाँ, सेठानी और उनके अनुजकी मुशीला विधवा श्रीमती मणि बेन को छोड़ गये थे। कुटुंबका सारा बोझा मणि बेन पर पड़ा, क्योंकि ये ही सबमें बड़ी थीं मगर वाहरे देवी ! इन्होंने अपने ज्येष्ठ बंधुके समान स्नेह करनेवाले जेठसे जो शिक्षा पाई थी उसे व्यर्थ न जाने दिया । मणि बेनने सबको अपनी स्नेहकी पाँखोंमें लिया और ममत्त्वके साथ जेठकी सन्तानको यथावत पाला पोसा । घर गृहस्थीका जो कार्य पहलेसे जैसे चला आ रहा था वैसे ही ये बराबर चलाती रहीं । किसी बालकको यथासाध्य यह अनुभव न होने दिया कि आज उनके सिरपर कोई नहीं है। सेठजी पिताके परम भक्त थे। उन्हों ने अपने पिताकी आज्ञाका कभी उलंघन नहीं किया। उनका दस्तूर था कि वे जैसे नियमित रूपसे प्रभुके दर्शन किये बिना अन्नजल नहीं लेते थे वैसे ही अपने पिता के दर्शन किये बिना भी अन्नोदक नहीं लेते थे। पिताकी अनुपस्थितिमें वे अपने पिताके फोटोका दर्शन कर लिया करते थे। सेठजीके सद्गुण इनके कुटुंबियोंको भी विरासतमें मिले हैं। सेठजीकी तरह इनका कुटुंब भी मिलनसार धनके मिथ्या अभिमानसे रहित और सादा मिजाज है। जो कोई इनके घर मिलने जाता है, ये लोग बड़े आनंदसे उससे मिलते हैं; प्रेमसे वार्तालाप करते हैं और यथोचित उसकी आवभगत करते हैं । इन पंक्तियोंका लेखक जब इनके बंगले पर गया तब इन लोगोंने इसके साथ बड़ी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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