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( २३५) मगर ये थे कि सब तरहकी बातें सहकर भी अपने संकल्पसे नहीं हटे थे। जिस समय इनका देहान्त हुआ उस समय इनके बड़े लड़के नरोत्तमदासकी आयु १८ बरसकी और इनकी बड़ी कन्या श्रीमती मैनावती देवीकी उम्र सोलह बरसकी थी। इनके बाद यद्यपि मैनावती देवीका ब्याह थोडेही अर्सेमें इनके कुटुंबियोंको करना पड़ा था; परन्तु इनके लड़के श्रीयुत नरोत्तमदासने साफ शब्दोंमें कह दिया था कि, मैं पिताजीकी इच्छानुसार जबतक पचीस बरसका न होऊँगा तबतक ब्याह न करूँगा । दैवयोगसे यह वीर भी बाईस बरसकी अवस्थाहीमें इस संसारसे चल बसा ।
उनकी द्वितीय पत्नी श्रीमती मंगला बेनका देहान्त भी सं० १९७६ में हो गया था। उन का स्वभाव बड़ा ही सुशील और स्नेही था । उनके हृदयमें कभी अपनेसे पहले पत्नीकी संतानके प्रति दुर्भाव उत्पन्न नहीं हुआ। वे सभीको अपने बालकोंके समान ही समझती थीं।
ये अपनी सन्तानको उच्च शिक्षा दिलानेके बड़े पक्षपाती थे । यद्यपि इन्हें मेट्रिक तक ही तालीम मिली थी; तथापि वे अपने सब लड़के लड़कियोंको ग्रेज्युएट बनानेकी इच्छा रखते थे। लड़के तो क्या उनकी पुत्रियाँ भी वे मरे उस समय-बड़ी मेट्रिकमें और छोटी श्रीमती वीणावती देवी इंग्लिश फिफ्थ स्टांडर्डमें अभ्यास करती थीं; मगर सेठके साथ ही उनके विचार भी चले गये।
उनके दूसरे लड़के श्रीयुत नवीनचंद्रजी इंग्लिश सिक्स्थ स्टांडर्ड तक ही पढ सके पीछे इन्हें अध्ययन छोड़ कर दुकानमें लगना पड़ा।
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